Bihar Board Class 9 Hindi मेरा ईश्वर (Mera Ishwar Class 9th Hindi Solutions) Text Book Questions and Answers
8. मेरा ईश्वर
कवि : लीलाधर जगूड़ी
मेरा ईश्वर मुझसे नाराज़ है
क्योंकि मैंने दुखी न रहने की ठान ली
मेरे देवता नाराज हैं
क्योंकि जो जरूरी नहीं है
मैंने त्यागने की कसम खा ली है
अर्थ–कवि प्रभु वर्ग अर्थात् शासक-वर्ग पर व्यंग्य करता हुआ कहता है कि वे कवि से अप्रसन्न हैं, क्योंकि उन्होंने इनके अनुकूल न चलने का निश्चय कर लिया है।
कवि ने उस प्रभु वर्ग की खोट नीयत देखकर उसे त्यागने की कसम खा ली है। तात्पर्य कि शासक-वर्ग स्वार्थ की पूर्ति के लिए निरीह लोगों को अपने शिकंजे में फँसाकर उनसे नाजायज लाभं उठाता है।
व्याख्या–प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि लीलाधर जगूड़ी द्वारा लिखित कविता ‘मेरा ईश्वर’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इनमें कवि ने वैसे लोगों पर गहरी चोट की है जोयेन-केन-प्रकारेण निरीह लोगों को अपने शिकंजे में ले लेते हैं तथा उन्हें अपने हाथ की कठपुतली बनाए रखते हैं।
कवि उस प्रभु वर्ग अर्थात् सत्ताधारी वर्ग के प्रति आक्रोश प्रकट करते हुए कहता है कि ये सत्ता सुखभोगी अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए बुद्धिजीवी वर्ग को अपना हथकंडा बना उनसे नाजायज लाभ उठाता है। कवि ऐसा करके दुखी रहना नहीं चाहता है, इसलिए वह उस प्रभु वर्ग से अलग रहने में ही अपना शुभ मानता है। अतः कवि के कहने का भाव यह है कि सत्ताधारी वर्ग की गलत नीति के कारण सामाजिक परिवेश दूषित हो रहा है। अतएव ऐसे भ्रष्ट वर्ग का त्याग करने में ही जनता का कल्याण है।
न दुखी रहने का कारोबार करना है
न सुखी रहने का व्यसन
मेरी परेशानियाँ और मेरे दुख ही
ईश्वर का आधार क्यों हों ?
पर सुख भी तो कोई नहीं है मेरे पास
सिवा इसके कि दुखी न रहने की ठान ली है |
अर्थ—कवि अपना विचार प्रकट करता है कि उसे न तो ऐसा काम करना है, जोदुख का कारण बने और न ही उसे सुख से रहने की आदत डालनी है। कवि यह नहीं चाहता है कि उसकी परेशानी अथवा दुःख ईश्वर का आधार बने। तात्पर्य है कि कविसहज रूप में रहना चाहता है। सुख एवं दुःख जीवन में आते-जाते ही रहते हैं। अतएव कवि सहज मानवीय-जीवन जीने का निश्चय करता है।
व्याख्या— प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि लीलाधर जगूड़ी द्वारा रचित कविता ‘मेरा ईश्वर’ शीर्षक पाठ से ली गई हैं। इनमें कवि ने सहज मानवीय-जीवन की विशेषताओं पर प्रकाश डाला है।
कवि का कहना है कि वह न तो कोई ऐसा व्यापार (कार्य) करना चाहता है जिसमें किसी प्रकार की भूल होने पर दुःख का अनुभव हो और न ही सुख से रहने की आदत डालना चाहता है। दोनों में किसी विपरीत परिस्थिति में दुःखी होना पड़ता है। कवि तो सहज जीवन जीना चाहता है। वह यह भी नहीं चाहता कि उसकी कठिनाई तथा दुःख किसी की आलोचना का विषय बने। जिसने प्रसन्नतापूर्वक रहना सीख लिया है, उसके लिए सुख तथा दुख दोनों एक जैसा प्रतीत होते हैं। कवि के कहने का भाव है कि आलोचना का पात्र वह होता है जो अपनी सुख-सुविधा के लिए दूसरों को दुख देता है, जबकि कवि सहजता में ही जीवन का असली रस पाता है।
अभ्यास के प्रश्न और उनके उत्तर
कविता के साथ :
प्रश्न 1. मेरा ईश्वर मुझसे नाराज है । कवि ऐसा क्यों कहता है ?
उत्तर—कवि ऐसा इसलिए कहता है क्योंकि वह दुःखी न रहने का निश्चय कर चुका है। अर्थात् कवि उस प्रभु से दूर रहना चाहता है, उसके शिकंजे में फँसकर उसके हाथ की कठपुतली बनने से वह बच जाय । इसीलिए कवि का ईश्वर उससे नाराज है ।
प्रश्न 2. कवि ने क्यों दुःखी न रहने की ठान ली है?
उत्तर—कवि स्वाभिमानी है । वह जीवन की सच्चाई को अच्छी तरह जानता है । इसलिए वह किसी के हाथ की कठपुतली बनना नहीं चाहता। वह जानता है कि जो
व्यक्ति प्रभु वर्ग के शिकंजे में चला जाता है, उसे उस शिकंजे से निकलना मुश्किल हो जाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अपने किए पर दुःख होता है। इसलिए कवि स्वतंत्र रहने का निश्चय करता है । कवि के कहने का भाव यह है कि जो दुःखी न रहने का निश्चय कर लेता है, वह हर काम विवेक से करता है ।
प्रश्न 3. कवि ईश्वर के अस्तित्व पर क्यों प्रश्न चिह्न खड़ा करता है ?
उत्तर – कवि स्पष्टवादी तथा चिंतनशील चरित्र का है। वह जानता है कि ईश्वर सर्वव्यापी एवं समद्रष्टा है। वह किसी के साथ पक्षपात नहीं करता । वह सबको समान दृष्टि से देखता है तथा सबके साथ समानता का भाव रखता है, वह हर स्थिति में एक- सा रहता है। लेकिन जो ईश्वर भेदभाव की दृष्टि से मनुष्य को देखता है अथवा मनुष्य के साथ असमान व्यवहार करता है, वह ईश्वर, कैसे कहला सकता है ? कवि का मानना है कि आज ईश्वर भी स्वार्थी हो गया है। वह स्वार्थ पूर्ति के लिए मनुष्य से वैध-अवैध सारा काम करवाता है तथा मनुष्य को अपने हाथ की कठपुतली बनाए रखता है और अपना उद्देश्य पूरा करता रहता है। इन्हीं कारणों से कवि ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न- चिह्न खड़ा करता है ।
प्रश्न 4. कवि दुख को ही ईश्वर की नाराजगी का कारण क्यों बताता है ?
उत्तर – कवि दुख को ही ईश्वर की नाराजगी का कारण इसलिए बताता है क्योंकि दुख की घड़ी में व्यक्ति अधीर हो जाता है और इस अधीरता की स्थिति में वह अपने कर्म पथ से च्युत हो जाता है तथा अनुचित को ही उचित मानकर उसके पीछे दौड़ने लगता है। तात्पर्य यह है कि दुख द्वारा अपनी नाराजगी जाहिर कर ईश्वर मनुष्य को शिकंजे में ले लेता है तथा अपने हाथ की कठपुतली बना उससे स्वार्थ सिद्धि करता है ।
प्रश्न 5. आशय स्पष्ट करें ।
(क) मेरे देवता मुझसे नाराज हैं
क्योंकि जो जरूरी नहीं है
मैंने त्यागने की कसम खा ली है
उत्तर- पृष्ठ 179 पर व्याख्या संख्या 1 देखें |
(ख) पर सुख भी तो कोई नहीं है मेरे पास
सिवा इसके की दुखी न रहने की ठान ली है।
उत्तर—इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि यद्यपि उसके पास सुख के साधन नहीं हैं फिर भी उसने दुखी न रहने की ठान ली है तात्पर्य कि कवि सुख-दुख दोनों को समान दृष्टि से देखता है। साथ ही, वह कोई ऐसा काम करना नहीं चाहता, जिससे उसके हृदय या मन पर चोट पहुँचे। वह सहजता के साथ अपना जीवन व्यतीत करना चाहता है, क्योंकि सहज जीवन जीने वालों के लिए सुख- दुख दोनों एकसमान होते हैं । फलतः उसके मन में राग-विराग की भावना उत्पन्न नहीं होती है ।
(ग) मेरी परेशानियाँ और मेरे दुख ही ईश्वर का आधार क्यों हो ?
उत्तर—कवि स्वाभिमानी है। वह अपने स्वाभिमान पर आरूढ रहने के कारण अपनी परेशानियों एवं दुखों को दूसरों पर थोपना नहीं चाहता। वह स्वयं उसे झेलना चाहता है कवि का मानना है कि सुख-दुख व्यक्ति के किए कर्म के फल हैं। अतएव कवि अपनी परेशानियों एवं दुखों का कारण ईश्वर को बता पलायनवादी बनना नहीं चाहता है। बल्कि हर विषम परिस्थिति में भी अपने कर्मपथ पर आरूढ रहना चाहता है।
प्रश्न 6. कविता का केन्द्रीय भाव स्पष्ट करें ।
उत्तर- प्रस्तुत कविता ‘मेरा ईश्वर’ उस प्रभुवर्ग पर गहरी चोट करती है जो मनुष्य को येन-केन-प्रकारेण अपने शिकंजे में ले लेता है और उसे अपने हाथ की कठपुतली. बनाए रखता है । कवि के कहने का मूल भाव यह है कि ईश्वर रूपी सत्तासीन अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए लोगों को अपने मनोनुकूल कार्य करने के लिए प्रेरित करता है तथा अपने उद्देश्य की पूर्ति करता रहता है । कवि ऐसे विचार या सिद्धांत का विरोधी है। वह लोगों को अपने विवेकानुसार काम करने को कहता है, क्योंकि ऐसी दशा में उनकी मानवता नष्ट नहीं होगी। सुख-दुख दोनों को सहज रूप में स्वीकार कर अपने कर्मपथ पर आरूढ़ रहेगा। उन्हें न तो किसी के हाथ की कठपुतली बननी पड़ेगी और न ही दुख देखकर असहजता की स्थिति आएगी ।
प्रश्न 7. कविता में सुख, दुख और ईश्वर के बीच क्या संबंध बताया गया हैं ?
उत्तर – कविता में सुख, दुख और ईश्वर के बीच यह संबंध बताया गया है कि ईश्वर जब नाराज होता है तो दुख देता है ताकि दुख की दशा में जीवन की सच्चाई का मनुष्य अनुभव कर सके कि दुख के समय कैसी व्यग्रता रहती है और लोगों का उसके प्रति कैसा अपनापन का भाव रहता है । कवि का मानना है कि सुख के समय मनुष्य की मानवता मर जाती है और वह मदांध हो जाता है। अतएव मनुष्य को दोनों ही स्थितियों से परे रहना चाहिए क्योंकि ईश्वर इन सबसे परे रहता है । कविता में सुख, दुख तथा ईश्वर के बीच गहरा संबंध बताया गया है ।
नोट : कविता के आस-पास के प्रश्नों के उत्तर छात्र स्वयं तैयार करें ।
भाषा की बात ( व्याकरण संबंधी प्रश्न एवं उत्तर ) :
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें :
उत्तर :
शब्द पर्यायवाची शब्द
ईश्वर ईश, प्रभु, भगवान
चंद्रमा शशि, विधु, निशाकर
सरस्वती शारदा, वीणापाणि, वीणावादिनी, भारती
शिव शंकर, महादेव, शंभु
दुख पीड़ा, कष्ट, विपत्ति
प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों का लिंग निर्णय करते हुए वाक्य बताएँ:
कसम, नाराज, कारोबार, परेशानियाँ
उत्तर : कसम — उसने दुखी न रहने की कसम खा ली है ।
नाराज – मेरी बातों से मोहन नाराज हो गया ।
कारोबार– उनका कारोबार खूब चल रहा है ।
परेशानियाँ—मँहगाई के कारण लोगों की परेशानियाँ बढ़ गई हैं।
प्रश्न 3. निम्नलिखित वाक्यों के कारक पद चिह्नित करते हुए स्पष्ट करें कि वे किस कारक के पद हैं :
(क) मेरा ईश्वर मुझसे नाराज है।
(ख) मैंने त्यागने की कसम खा ली है।
(ग) ईश्वर का आधार क्यों हो ?
उत्तर : (क) मेरा ईश्वर-कर्ता कारक
मुझसे — अपादान कारक
(ख) मैंने—कर्ताकारक
त्यागने की— संबंध कारक
(ग) ईश्वर का – संबंध कारक ।
प्रश्न 4. कविता में से निजवाचक शब्दों को लिखें ।
उत्तर : मैंने–स्वयं कवि के लिए
मेरी स्वयं कवि की
मेरे स्वयं कवि का ।
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