Bihar Board Class 9 Hindi पद (Pad Class 9th Hindi Solutions)Text Book Questions and Answers
2. पद, कवि-मंझन
पेम अमोलिक नग सयंसारा।जेहि जिअं पेम सो धनि औतारा।
पेम लागि संसार उपावा।पेम गहा बिधि परगट आवा।
पेम जोति सम सिस्टि अंजोरा।दोसर न पाव पेम कर जोरा।
बिरुला कोइ जाके सिर भागू।सो पावै यह पेम सोहागू।
सबद ऊँच चारिहुं जुग बाजा।पेम पंथ सिर देइ सो राजा।
पेम हाट चहुं दिसि है पसरी गै बनिजौ जे लोइ।
लाहा औ फल गाहक जनि डहकावै कोइ ॥
अर्थ-कवि मंझन प्रेम की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि प्रेम संसार में बहुमूल्य पत्थर के समान है। जिसके हृदय में प्रेम का संचरण होता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। प्रेम के कारण ही ईश्वर इस संसार में प्रकट होता है। प्रेम ज्योति के समान इस संसार को प्रकाशित करता है। किसी अन्य भाव से नहीं बल्कि प्रेम के सहारे ही यह संभव है। कवि का कहना है कि भाग्यवान व्यक्ति को प्रेम करने का सौभाग्य प्राप्त होता है, क्योंकि प्रेम की महत्ता हर युग में रही है। जिसने अपने-आपको इस प्रेम रूपी अरूप पर अपने को अर्पित कर दिया है अर्थात् जिसने प्रेम को ही अपना सर्वस्व माना है, वह पूज्य और महान हो गया है अथवा हो जाता है। कवि फिर कहता है कि प्रेम का बाजार चारों ओर फैला हुआ है और जो सफल व्यापारी के समान इसे प्राप्त करना चाहता है, “उसे प्रेमस्वरूप की प्राप्ति अवश्य होती है। इसमें किसी को भ्रमित होने या करने की जरूरत नहीं है।
व्याख्या-प्रस्तुत कड़बक भक्तिकालीन प्रेममार्गी शाखा के कवि मंझन द्वारा लिखित है। कवि मंझन सूफी मत के कवि हैं। उन्होंने इसमें प्रेम के महत्त्व अथवा विशेषता पर प्रकाश डाला है।कवि का कहना है कि प्रेम जीवन का अमूल्यसाधन है, जिसके सहारे मनुष्य अमरता प्राप्त कर लेता है। प्रेम ईश्वर तक पहुँचने का मात्र साधन ही नहीं, ईश्वर का प्रतिरूप भी है, जो इस प्रेमरस को चख लेता है उसका जीवन धन्य हो जाता है, सारा संसार उसके समक्ष नतमस्तक हो जाता है। कवि के कहने का तात्पर्य है कि जो व्यक्ति इस प्रेम मार्ग का राही बन जाता है, उसके लिए संसार की कोई भी वस्तु अलभ्य नहीं रहती। ईश्वर प्रेम का भूखा होता है न कि किसी वस्तु या दिखावे का? इसीलिए कबीर ने भी कहा “ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।’ निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि यह संसार प्रेमरूपी ज्योति से ही प्रकाशमान है। इसलिए मनुष्य को कभी किसी प्रकार के भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए।
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अमर न होत कोइ जग हारै।मरि जो मरै तेहि मींचु न मारै।
पेम के आगि सही जेई आंचा।सो जग जनमि काल सेउं बांचा।
पेम सरनि जेइं आपु उबारा।सो न मरै. काहू कर मारा।
एक बार जौ. मरि जीउ पावै।काल बहुरि तेहि नियर न आवै।
मिरितु क फल अब्रित होइ गया।निहअंमर ताहि के कया।
जौ जिउ जानहि काल भौ पेम सरन करि नेम।
फोरै दुहुँ जग काल भौ सरन काल जग पेम ॥
अर्थ– कवि का कहना है कि इस संसार में कोई अमर नहीं होता किंतु जो स्वयं कोप्रेम के पीछे मार देता है, उसे विष या मृत्यु भी नहीं मारते । क्योंकि प्रेम की आग में जोअपने को तपा देता है, वह इस संसार में जन्म लेकर मृत्यु से भी बच जाता है। कविका विश्वास है कि जो मनुष्य प्रेमरूपी सीढ़ी पर स्वयं को आरूढ़ कर देता है, उसे कोई मार नहीं सकता अर्थात् किसी के मारने से वह मरता नहीं है । जो मनुष्य एकबार प्रेम के पीछे अपने को बलिदान दे देता है, फिर मृत्यु उसके पास कभी नहीं आती है। वह अपने बलिदान के कारण अमर हो जाता है और उसका नाम सदा के लिए अमरता प्राप्त कर लेता है। अतः जो मनुष्य प्रेम रूपी मार्ग पर नियमपूर्वक चलता है, सांसारिक बाधाएँ उसकी कुछ भी नहीं बिगाड़ती हैं तथा वह दोनों ही स्थितियों में अर्थात् जीवन-काल में एवं मृत्यु के बाद भी अमर रहता है।
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व्याख्या– प्रस्तुत कड़बक भक्तिकालीन प्रेममार्गी शाखा के कवि मंझन द्वारा लिखित है। इसमें कवि ने प्रेम के महत्त्व को प्रतिपादित किया है।कवि ने कहा है कि प्रेम अमर होता है। प्रेम का नाश किसी भी स्थिति में नहीं होता। प्रेम मानवता का मूल है। अर्थात् प्रेम के सिवा संसार में कुछ भी अमर नहीं होता लेकिन जो अनुष्य अपने-आपको प्रेम की बलिवेदी पर अर्पित कर देता है, वह अमर हो जाता है। कवि का मानना है कि जो अपने को भगवत् रूपी आग में तपा देता है, वह निष्कलुष, निर्मल एवं अमर हो जाता है । वह किसी के मारने से भी नहीं मरता । क्योंकि वह पहले ही अपनी सारी इच्छाओं को मार चुका होता है। इसका परिणाम होता हैं कि उसका वह त्याग उसे अमरता प्रदान कर देता है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि प्रेम प्रभु तक पहुँचने का सुगम मार्ग है, जो इस प्रेमरस का पान कर लेता है, उसकी सारी सांसारिक इच्छाएँ स्वतः नष्ट हो जाती हैं और उसे सब कुछ प्रेममय प्रतीत होने लगता है। इसी कारण प्रेम को ईश्वर का दूसरा रूप माना गया है।
अभ्यास के प्रश्न और उनके उत्तर
कविता के साथ :
प्रश्न 1. कवि (मंझन ) ने प्रेम को संसार में अँगूठी के नगीने के समान अमूल्य माना है । इस पंक्ति को ध्यान में रखते हुए कवि के अनुसार प्रेम के स्वरूप का वर्णन करें ।
उत्तर—कवि (मंझन) ने प्रेम के संबंध में अपना विचार प्रकट करते हुए कहा है कि प्रेम मानव जीवन की अमूल्य निधि है। प्रेम के प्रकाश से ही सारा संसार प्रकाशमान है प्रेम ही मानव को ईश्वरतुल्य बनाता है। प्रेम ईश्वर का चिन्मय रूप है । जो मनुष्य इस प्रेमपथ पर स्वयं को अर्पित कर देता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है । वह अमरता प्राप्त कर दूसरों को भी प्रेमरस का पान कर अमर बनने के लिए प्रेरित करता है ।
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प्रश्न 2. कवि ने सच्चे प्रेम की क्या कसौटी बताई है?
उत्तर— कवि नें सच्चे प्रेम की कसौटी के बारे में कहा है कि जो मनुष्य स्वयं को प्रेम मार्ग पर अर्पित कर देता है, वह अमर हो जाता है। वह किसी के मारने से नहीं मरता और चारों युगमें उसका नाम अमर रहता है। अतः सच्चे दिल से मानवता की पूजा करना सच्चे प्रेम की कसौटी है ।
प्रश्न 3. ‘ पेम गहा विधि परगट आवा’ से कवि ने मनुष्य की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है?
उत्तर – पेम गहा विधि परगट आवा’ के माध्यम से कवि ने मनुष्य की आध्यात्मिक प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है तथा स्पष्ट किया है कि प्रेम के द्वारा ही परमात्मा को पाया जा सकता है। यह संसार प्रेम का ही परिणाम है।
प्रश्न 4. आज मनुष्य ईश्वर को इधर-उधर खोजता फिरता है लेकिन कवि मंझन का मानना है कि जिस मनुष्य ने भी प्रेम को गहराई से जान लिया, स्वयं, ईश्वर वहाँ प्रकट हो जाते हैं। यह भाव किन पंक्तियों से व्यंजित होता है।
उत्तर: “जो जिउ जानहि काल भौ पेम सरन करि नेम ।
फिरै दुहुं जग काल भौ सरने काल जग पेम ।
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प्रश्न 5. कवि की मान्यता है कि प्रेम के पथ पर जिसने भी अपना सिर दे दिया वह राजा हो गया । यहाँ ‘सिर देना’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- ‘सिर देना’ मुहावरा है जिसका अर्थ होता है— समर्पित करना । जब कोई व्यक्ति पूर्ण समर्पण भाव से या सच्चे दिल से प्रेम को अपना लेता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। उसे लोग ईश्वर तुल्य मानने लगते हैं क्योंकि उसके लिए सारा संसार ही अपने जैसा प्रतीत होने लगता है ।
प्रश्न 6. प्रेम से व्यक्ति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ? पठित पदों के आधार पर तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए ।
उत्तर – प्रेम व्यक्ति को अमर बना देता है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति अच्छा कर्म करता है, उसका यश सृष्टि पर्यन्त कायम रहता है । कवि मंझन का मानना है कि प्रेम परमात्मा तक पहुँचने का अमोघ अस्त्र है, जो व्यक्ति इस प्रेम रस में डूब जाता है, वह अमर हो जाता है। उसका शरीर नष्ट होता है, उसका सच्चा प्रेम उसे अमर बना देता है ।
प्रश्न 7. सप्रसंग व्याख्या करें :
“पेम हाट चहुँ दिसि पसरीगै बनिजौ जे लोइ ।
लाहा ओ फल गाहकं जनि डहकावें कोइ ॥ “
उत्तर – प्रस्तुत पद्यांश निर्गुण प्रेमाश्रयी शाखा के प्रसिद्ध सूफी कवि मंझन द्वारा लिखित है। इसमें कवि ने प्रेम के महत्त्व को उद्घाटित किया है ।
कवि का कहना है कि प्रेम का बाजार चारों ओर फैल गया है, जिसने इस प्रेमरूपी फेल को प्राप्त करना चाहा, वही सच्चा व्यापारी है । कोई इसे भ्रमित करने का प्रयास न करे । कवि के कहने का तात्पर्य कि सारा संसार प्रेमरूपी ज्योति से प्रकाशमान है । जो कोई प्रेम के असली मर्म को जाना लेता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है, क्योंकि प्रेम में ही परमात्मा निवास करता है । कवि स्वीकार करता है कि प्रेम रस पान करने का सौभाग्य विरले लोगों को मिल पाता है। ऐसा इसलिए होता है कि लोग सांसारिक चकाचौंध में भ्रमित हो जाते हैं। उन्हें संसार ही सच प्रतीत होता है, जिस कारण वे प्रेम के मर्म को समझ नहीं पाते हैं ।
प्रश्न 8. भाव- सौन्दर्य स्पष्ट करें :
(क) एक बार जौ मरि जीउ पावै । काल बहुरि तेहि नियर न आवै ।
उत्तर—कवि का मानना है कि जो मनुष्य एकबार प्रेम की खातिर अपनी इच्छाओं का त्याग कर देता है । अर्थात् प्रेम की बलिवेदी पर अर्पित कर देता है तो उसका हृदय प्रेमरूपी प्रकाश से प्रकाशमान हो जाता है। जिस कारण मृत्यु उसके पास नहीं आती । तात्पर्य कि अमरता प्राप्त करने के बाद व्यक्ति का यश सृष्टि पर्यन्त कायम रहता है।
(ख) मिरितुक फल अंबित होइ गया । निहचैं अमर ताहि कै कया ।
उत्तर – कवि का कहना है कि जिसने सारे सांसारिक सुखों का त्याग कर प्रेम को गले लगा लेता है या जो प्रेम को अपना सर्वस्व मान लेता है, उसका यह त्याग उसे अमरता प्रदान कर देता है। उसके मानव शरीर धारण करने का शुभ फल मिल जाता है। वह जीवन-मरण के बंधन से छुटकारा पा जाता है और निश्चय रूप से सदा- सदा के लिए अमर हो जाता है। तात्पर्य कि वह प्रेम के माध्यम से परमात्मा को पा लेता है ।
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प्रश्न 9. प्रेम में सर्वस्व समर्पण से व्यक्ति के निजी जीवन में आत्मिक सुंदरता आ जाती है, वह परिपक्वता कवि के विचारों में किस प्रकार आती है ? स्पष्ट करें ।”
उत्तर – प्रेम जीवन का मूल है। जब कोई साधक या व्यक्ति सच्चे दिल से संसार का त्यागकर प्रभु के चरणों में स्वयं को समर्पित कर देता है तो उसे एक अद्भुत आनंद की अनुभूति होने लगती है । वह जैसे – जैसे प्रभु के प्रेम रस में डूबता जाता है, वैसे-वैसे उसके हृदय की दुर्बलताएँ क्षीण होने लगती हैं। उसका हृदय निष्कलुप होने के कारण राग-विराग या अपना पराया के विचार से ऊपर उठ जाता है, जिससे उसके निजी जीवन में आत्मिक सुंदरता आ जाती है ।
कवि के विचारानुसार यह परिपक्वता तब आती है जब व्यक्ति नियमपूर्वक उस प्रेम रूपी बेलि को नाम रूपी जल से सींचता रहता है, क्योंकि नाम रूपी जल उस प्रेम- बेलि को सूखने नहीं देता है। फलतः सासांरिकता उसके पास पहुँच नहीं पाती है और प्रेमरूपी धारा प्रबल रूप में प्रवाहित होने लगती है ।
प्रश्न 10. प्रेम की शरण में जाने पर जीव की क्या स्थिति होती है ?
उत्तर – कवि के अनुसार, जो जीव प्रेम की शरण में चला जाता है अर्थात् ‘ जो जीवन को सच्चे दिल से प्रेम स्वरूप परमात्मा के चरणों में समर्पित कर देता है, वह किसी के मारने से नहीं मरता, क्योंकि ईश्वर उसके रक्षक हो जाते हैं । तात्पर्य कि उसका जीवन अमर हो जाता है। उसके प्रेम का प्रकाश युगपर्यंत अपनी ज्योति बिखेरता रहता है। उसकी स्थिति ‘तुमहिं मिलि तुमहि हो जाई’ की हो जाती है। अर्थात् जीवात्मा परमात्मा में मिलकर एकाकार हो जाता है ।
नोट : कविता के आस-पास के प्रश्नों के उत्तर छात्र स्वयं करें ।
भाषा की बात (व्याकरण संबधी प्रश्न एवं उत्तर ) :
प्रश्न 1. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखें :
उत्तर :
शब्द पर्यायवाची शब्द
संसार अखिल, दुनिया, निखिल
सिर माथा, मस्तक
हाट बाजार, हटिया
पंथ मार्ग, राह, रास्ता, बीथी
प्रेम स्नेह, मुहब्बत
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प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के विपरीतार्थक शब्द लिखें :
उत्तर :
शब्द विपरीतार्थक शब्द
ऊँच नीच
अमृत विष
प्रगट अप्रकट
प्रेम घृणा
सिर पैर ।
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखें :
उत्तर :
शब्द मानक रूप
सबद शब्द
मिरितु मृत्यु
पेम प्रेम
सिस्टि सृष्टि
दोसर दूसरा
गाहक ग्राहक
अंबित अमृत
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