Bihar Board Class 9 Hindi पलक पाँवड़े (Palak Pawde Class 9 Hindi Solutions)Text Book Questions and Answers
4. पलक पाँवड़े कवि ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’
आज क्यों भोर है बहुत भाता।
क्यों खिली आसमान की लाली॥
किसलिए है निकल रहा सूरज।
साथ रोली भरी लिए थाली ॥
इस तरह क्यों चहक उठी चिड़ियाँ।
सुन जिसे है बड़ी उमंग होती॥
ओस आकर तमाम पत्तों पर।
क्यों गई है बखेर यों मोती ॥
अर्थ-कवि हरिऔध सूर्योदयकालीन प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि आज सुबह इतनी सुहावनी क्यों लग रही है, आकाश का रंग लाल क्यों है ? सूरज लाल रंग के चंदन से सुसज्जित थाल के समान क्यों उदित हो रहा है। की सूर्योदय के इस बेला में चिड़ियों के चहकने से अद्भुत आनंद छा गया है। ओस के कण वृक्ष के सारे पत्तों पर मोती के समान प्रतीत हो रहे हैं। कवि जानना चाहता है – कि ये सारे परिवर्तन किस कारण हो गए हैं।
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व्याख्या– प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘अयोध्या सिंह उपाध्याय’ द्वारा लिखित कविता ‘पलक पाँवड़े’ से ली गई हैं। इसमें कवि ने प्रातःकालीन प्राकृतिक सुषमा का बड़ा ही हृदयहारी वर्णन किया है।
कवि ने इन प्राकृतिक दृश्यों के माध्यम से यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जिस प्रकार सूर्य की किरणें छिटकते ही सारा वातावरण रक्तिम प्रतीत होने लगता है, चिड़ियों के कलरव से वातावरण मधुमय हो जाता है, पेड़ के पत्तों पर बिखरे ओसकण मोती के समान चमकते दिखाई पड़ते हैं, उसी प्रकार देशवासियों में देश-प्रेम एवं स्वतंत्रता की उत्कट भावना देख कवि अभिभूत हो जाता है। कवि को ऐसा लगता है, जैसे—एक नये प्रभात का आगमन हुआ है। कवि ने प्रश्नशैली में अपनी जिज्ञासा प्रकट कर यह दर्शाने का प्रयास किया है कि देशवासी तभी सुंदर लगते हैं जब उनमें देश-प्रेम की भावना प्रबल होती है। नई सुबह की खुशी में प्रकृति अपना सौंदर्य बिखेर रही है तोदूसरी ओर अपनी स्वतंत्रता का आभास पाकर देशवासी उल्लसित हैं।
पेड़ क्यों हैं हरे – भरे इतने।
किसलिए फूल हैं बहुत फूले॥
इस तरह किसलिए खिली कलियाँ।
भौंर हैं किस उमंग में भूले॥
क्यों हवा है सँभल-सँभल चलती।
किसलिए है. जहाँ-तहाँ थमती॥
सब जगह एक-एक कोने में।
क्यों महक है पसारती फिरती॥
अर्थ–कवि प्रश्नशैली में जानना चाहता है कि आज पेड़ इतने हरे-भरे क्यों हैं, फूल इतने क्यों खिल उठे हैं, कलियाँ किसलिए इस तरह खिल गई हैं और भौरे किस मस्ती या आनंद में इतने बेसुध हो गए हैं।
हवा सँभल-सँभल कर क्यों चलती है तथा जहाँ-तहाँ ठहर क्यों जाती है? इन फूलों की सुगंध को हवा क्यों बिखेर रही है? कवि के कहने का तात्पर्य है कि इस मादक परिस्थिति में प्रकृति अपना सारा सौन्दर्य इस प्रकार बिखेर रही है कि जगत् का कण-कण आत्मविभोर हो गया है।
व्याख्या-प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा लिखित कविता “पलक पाँवड़े’ पाठ से ली गई हैं। इसमें कवि ने प्रकृति के व्यापक मनोहारी दृश्य का वर्णन करते हुए देश-प्रेम तथा स्वतंत्रता की उत्कट भावना को व्यक्त किया है। कवि का कहना है कि जिस प्रकार वसंत के आगमन होते ही प्रकृति अपने सारे सौंदर्य से परिपूर्ण हो जाती है, उसी प्रकार देश-प्रेम तथा स्वतंत्रता की भावना से उत्फुल्ल सारे देशवासी इतने बेसुध हो गए हैं कि उन्हें मरने का भी भय नहीं है। वे स्वतंत्रता की सुगंध को सर्वत्र बिखेरते फिरते हैं ताकि सारा देश इस आनंद की प्राप्ति के लिए व्याकुल हो उठे । कवि यह कहना चाहता है कि जिस प्रकार वसंत के समय पेड़-पौधे हरे-भरे तथा फल-फूलों से लद जाते हैं। भौरे पराग रस का पान कर बेसुध हो जाते हैं हवा मंद-मंद बहती है तथा फूलों की सुगंध बिखेरती है, उसी प्रकार स्वतंत्रता के इस मधुर वातावरण में सारे देशवासी प्रसन्नचित्त हैं तथा देश-प्रेम की भावना को उद्दीप्त करते-फिरते हैं।
लाल नौले सफेद पत्तों में । भर गए फूल बेलि बहली क्यों ।।
झील तालाब और नदियों में । विछ गई चादरें सुनहली क्यों ॥
किसलिए ठाट बाट है ऐसा ।जी जिसे देखकर नहीं भरता ।।
किसलिए एक-एक थल सजकर । स्वर्ग की है बराबरी करता ।।
अर्थ—कवि जानना चाहता है कि ये लाल, नीले, सफेद पत्ते फूलों से भर गए, लताएँ बहलने लगीं तथा नदियों, झीलों एवं तालाबों के जल सोने की चादरें जैसी क्यों दिखाई पड़ते हैं। तात्पर्य कि प्रातः काल में पेड़-पौधे फूलों से लद जाते हैं तथा सूर्य की पहली किरणों के पड़ने से नदी, तालाब तथा झीलों के जल सुनहले प्रतीत होते हैं जससे जल-राशि का दृश्य अति मनोरंजक हो जाता है।
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कवि यह भी जानना चाहता है कि इस प्रकार की सजावट किसके लिए की जाती है जिसे देखकर ऐसा लगता है, जैसे—स्वर्ग यही हो । अतः कवि के कहने का भाव यह है कि सूर्योदय के स्वागत में प्रकृति अपना सारा सौन्दर्य प्रस्तुत कर देती है। – व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा लिखित कविता ‘पलक पाँवड़े’ से ली गई हैं। इसमें कवि ने सूर्योदय का मनोहारी वर्णन किया है। कवि का कहना है कि सुबह होते ही प्रकृति में अद्भुत परिवर्तन हो जाता है। लाल, नीले, सफेद पत्ते फूलों से लद जाते हैं । सूर्य की लाल-लाल किरणों से नदी, झील तथा तलाब के जल सोने की चादर जैसे प्रतीत होते हैं। प्रकृति की ऐसी सुन्दरता देखते रहने की इच्छा बनी रहती है। प्रकृति की यह सजावट स्वर्ग जैसी प्रतीत होती है। लेकिन कवि की जिज्ञासा बनी रहती है कि प्रकृति में यह परिवर्तन क्यों होता है ? कवि के कहने का तात्पर्य है कि जिस प्रकार प्रकृति सूर्योदय की अगवानी में अपनी सारी सुषमा बिखेर देती है उसी प्रकार स्वतंत्रता की पहली किरण को पाने के लिए देशवासी अपना तन-मन-धन समर्पित कर स्वतंत्रता देवी के दर्शन के लिए लालायित हैं।
किसलिए है चहल-पहल ऐसी । किसलिए धूमधाम दिखलाई ॥
कौन-सी चाह आज दिन किसकी। आरती है उतारने आई ।।
देखते रह धक गई आँखें। क्या हुआ क्यों तुम्हें न पाते हैं ।
आ अगर आज आ रहा है तू। हम पलक पाँवड़े बिछाते हैं।
अर्थ- कवि हरिऔध जी जिज्ञासा भरे शब्दों में कहते हैं कि इतनी हलचल क्यों है अथवा इतनी खुशी किसलिए प्रकट की गई है ? किस इच्छा की पूर्ति के लिए आज के दिन का यशोगान होने वाला है। उद्देश्य की सफलता की प्राप्ति की प्रतीक्षा करतेकरते आँखें पथरा गई हैं। किस कारण यह सफलता हमें नहीं मिल रही है । अपना हार्दिक उदगार प्रकट करते हए कवि कहता है यदि आज वह सफलता मिल रही है तो हम तुम्हारे स्वागत में इस सफलता रूपी मार्ग को सजाकर जिज्ञासा भरी दृष्टि से प्रतीक्षारत हैं।
व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियाँ अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ द्वारा लिखित कविता – ‘पलक पाँवड़े पाठ से ली गई हैं। इसमें कवि ने चिरप्रतीक्षित स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रति अपनी उत्कंठा प्रकट की है।
कवि का कहना है कि इस नव बिहान के अवसर पर लोगों में एक नया जोश आ गया है। वे स्वतंत्रता देवी की आरती उतारने के लिए उतावले हैं, क्योंकि इस स्वतंत्रता प्राप्ति की आशा में लोगों की आँखें पथरा-सी गई हैं। कवि अपना हार्दिक प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहता है कि यदि आज हमें स्वतंत्रता प्राप्त होने जा रही है तो हम स्वतंत्रता देवी के स्वागत में पलक पाँवड़े बिछा देते हैं । अतः कवि के कहने का तात्पर्य है कि हम देशवासी अपनी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए इतने उत्कंठित हैं कि हम अपना सर्वस्व स्वतंत्रता की खातिर अर्पित करने को तत्पर हैं, क्योंकि इसी स्वतंत्रता के माध्यम से हमें पराधीनता . के कलंक से मुक्ति संभव है।
अभ्यास के प्रश्न और उनके उत्तर
कविता के साथ :
प्रश्न 1. कवि को भोर क्यों भा रहा है ?
उत्तर—कवि को भोर इसलिए भा रहा है क्योंकि प्रकृति अपनी सारी सौन्दर्य-सुषमा के साथ सूर्योदय के स्वागत के लिए तत्पर है । कवि को लगता है कि नव बिहान की खुशी में सारी प्रकृति आनन्दित हो उठी है। सभी नई उमंग, नये जोश तथा नये उत्साह से अपनी प्रसन्नता का इजहार कर रहे हैं ।
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प्रश्न 2. ‘रोली भरी थाली’ का क्या आशय है ?
उत्तर— ‘रोली भरी थाली’ से कवि का आशय यह है कि जिस प्रकार तिलक करने के लिए पूजा में काम आनेवाली सामग्री किसी थाल में सजाकर रखी जाती है, उसी प्रकार प्रकृति सूर्योदय के स्वागत में अपना सौन्दर्य बिखेर रही है । अर्थात् सूर्य की फूटती लाल किरणों में सारी प्रकृति थाल में सजी सामग्री के समान प्रतीत हो रही है ।
प्रश्न 3. कवि को प्रकृति में हो रहे परिवर्तन किस रूप में अर्थपूर्ण जान पड़ते हैं?
उत्तर—कवि को प्रकृति में हो रहे परिवर्तन इस रूप में अर्थपूर्ण जान पड़ते हैं क्योंकि प्रकृति अपने परिवर्तन के माध्यम से हमें यह संदेश देना चाहती है कि परिवर्तन ही जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है, जिससे जड़ता नष्ट होती है तथा जीवन में गतिशीलता आती है ।
प्रश्न 4. हवा के कौन-कौन से कार्य-व्यापार कविता में बताए गए हैं ?
उत्तर—कविता में हवा के निम्निलिखित कार्य-व्यापार पर प्रकाश डाले गए हैं, जैसे— सँभल – सँभल कर चलना, जहाँ-तहाँ थमना तथा सुगंध को सर्वत्र बिखेरते फिरना ।
प्रश्न 5. सुनहली चादरें कहाँ बिछी हुई हैं और क्यों ?
उत्तर – सुनहली चादरें झील, तालाब तथा नदियों में बिछी हुई हैं, क्योंकि प्रातःकालीन सूर्य की सुनहली किरणों के पड़ने से इनके जल सुनहली चादर जैसी प्रतीत होती है ।
प्रश्न 6. प्रकृति स्वर्ग की बराबरी कैसे करती है ?
उत्तर—प्रकृति अपने व्यापक मनोहारी दृश्य उपस्थित करने के कारण स्वर्ग जैसी प्रतीत होती है । कवि का मानना है कि जिस प्रकार स्वर्ग अपने सौंदर्य साधनों के कारण अति रमणीय माना जाता है, उसी प्रकार प्रातः काल में प्रकृति का कण-कण सौन्दर्य – सुषमा से इस प्रकार सुसज्जित रहता है कि लोग स्वर्ग जैसा आनन्द अनुभव करने लगते हैं । इस अद्भुत सौंदर्य के कारण प्रकृति स्वर्ग की बराबरी करती है ।
प्रश्न 7. कवि को ऐसा लगता है कि सभी प्राकृतिक व्यापारों के प्रकट होने के पीछे कोई गूढ़ अभिप्राय है । यह गूढ़ अभिप्राय क्या हो सकता है? आप सोचते हैं? अपने विचार लिखें ।
उत्तर—कवि का मानना है कि प्रत्येक प्राकृतिक व्यापारों के प्रकट होने के पीछे कोई गूढ़ अभिप्राय रहता है । इसका तात्पर्य यह है कि प्रकृति अपने कार्य-व्यापार के माध्यम से लोगों में चेतना का भाव भरती है । लोग प्रकृति से शिक्षा ग्रहण कर कर्म के प्रति उन्मुख होते हैं। जैसे- सूर्य नियत समय पर उदित होकर अंधकार को दूर भगाता है, पेड़-पौधे नियत समय पर फलते-फूलते हैं, बादल समय पर जल बरसा कर सूखी धरती की प्यास बुझाते हैं तो नदियाँ कल-कल करती हुई लोगों को यह संदेश देती हैं कि हमें भी अपने जीवन मार्ग पर सतत् बढ़ते रहना चाहिए। हवा हमें यह संदेश देती है कि हमें मानवीय गुणों का प्रचार-प्रसार करना चाहिए । अतः इससे स्पष्ट होता है कि प्रकृति अपने कार्य- व्यापार द्वारा कर्मठ, उपकारी, प्रेमी तथ त्यागी बनने की प्रेरणा देती है। मेरे विचार से प्रकृति के प्रति कवि की अभिव्यक्ति अक्षरशः सत्य है, क्योंकि प्रकृति से ही हम मानवता की सीख पाते हैं।
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प्रश्न 8. यह कविता नवजागरण और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लिखी गई थी, नई चेतना और नया बिहान आने को था। इस कविता में उसकी कोई आहट है ? अगर हाँ तो किस रूप में ? स्पष्ट करें ।
उत्तर – प्रस्तुत कविता ‘पलक पाँवड़े’ उस समय लिखी गई थी, जिस समय भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम की लहर चल रही थी । देशवासी अपनी स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए जागरूक हो चुके थे तथा ब्रिटिश सत्ता को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर रहे थे । देशवासियों को ऐसा विश्वास होने लगा था कि नया बिहान आने वाला है। इसीलिए कवि ने प्रातः कालीन दृश्यों का वर्णन कर यह संदेश देना चाहा है कि जिस प्रकार उषा का आगमन होते ही प्रकृति के पेड़-पौधे, जीव-जन्तु सभी सूर्योदय के स्वागत में अपना सौन्दर्य बिखेरने लगते हैं, उसी प्रकार देशवासी भी स्वतंत्रता देवी के श्रीचरणों पर अपना सर्वस्व अर्पित कर नये बिहान के लिए उत्कंठित हैं । वे स्वतंत्रता की सुगंध को हवा की भाँति सर्वत्र बिखेरते फिरते हैं, ताकि सारा देश स्वतंतंत्रा की प्राप्ति के लिए समग्र रूप में उन्मुख हो सके और समान रूप से स्वतंत्रता के स्वागत में तत्पर हो सके ।
प्रश्न 9. कवि को किसकी उत्कंठित प्रतीक्षा है ? इस पर विचार कीजिए ।
उत्तर – कवि को नये बिहान अर्थात् देश की स्वतंत्रता की उत्कंठित प्रतीक्षा है । कवि का मानना है कि पराधीनता की घड़ी में व्यक्ति की वाणी कुंठित रहती है । वह खुले रूप में अपना कोई विचार प्रकट नहीं कर सकता है । उसका सब कुछ पराधीनता की बेड़ी में जकड़ा रहता है। इतना ही नहीं, पराधीन देश के नागरिक को हर जगह हेय दृष्टि से देखा जाता है। इस कारण कवि नये बिहान के स्वागतार्थ पलक पाँवड़े बिछा देता हैं तथा पूर्ण उत्कंठा से देश की स्वतंत्रता की प्रतीक्षा करता है ।
नोट : कविता के आस-पास के प्रश्नों के उत्तर छात्र स्वयं तैयार करें।
भाषा की बात (व्याकरण संबंधी प्रश्न एवं उत्तर ) :
प्रश्न 1. “आ अगर आज आ रहा है तू” अगर हम इस पंक्ति को यूँ कर दें- ” आ अगर आज आ रहे तुम” तो अर्थ की दृष्टि से क्या परिवर्तन हो जाता है? वह उचित है अथवा नहीं ।
उत्तर— ‘आ अगर आज आ रहा है तू’ को ‘आ अगर आज आ रहे तुम’ में बदल दिया जाए तो अर्थ में महान बदलाव आ जाएगा क्योंकि मूल पंक्ति से नये बिहान का भावं व्यंजित होता है तो परिवर्तित पंक्ति से किसी व्यक्ति विशेष के आने का भाव व्यंजित होता है। अतः यह परिवर्तन उचित नहीं है, क्योंकि कविता में सूर्योदय के माध्यम | से देश की स्वतंत्रता की ओर संकेत किया गया है ।
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प्रश्न 2. कविता में प्रयुक्त शब्द युग्म एकत्र करें और उनके स्वतंत्र वाक्य प्रयोग करें। जैसे-हरे-भरे, सँभल-सँभल, जहाँ-तहाँ आदि ।
उत्तर— एक-एक, ठाट-बाट, चहल-पहले आदि
एक-एक–वर्ग से एक-एक छात्र निकल चुके थे ।
ठाट-बाट— मंत्रीजी की ठाट-बाट देखकर सभी दंग रह गए।
चहल-पहल — आज बाजार में काफी चहल-पहल थी ।
हरे-भरे — हरे-भरे खेत सुहावने लगते हैं ।
सँभल – सँभल – पहाड़ी क्षेत्रों में सँभल- सँभलकर चलना पड़ता है ।
जहाँ-तहाँ — प्रधानमंत्री के स्वागत में जहाँ-तहाँ तोरण द्वार बने हुए थे ।
प्रश्न 3. कविता के अंतिम छंद में ‘मैं’ की जगह ‘हम’ सर्वनाम का प्रयोग क्यों है ?
उत्तर—कविता के अंतिम छंद में ‘मैं’ की जगह ‘हम’ सर्वनाम का प्रयोग सारे भारतवासियों की उत्कंठा को व्यंजित करने के लिए हुआ है।
प्रश्न 4. निम्नांकित शब्दों के विपरीतार्थक रूप लिखें :
उत्तर :
शब्द विपरीतार्थक रूप
आसमान धरती
दायाँ बायाँ
सुबह शाम
स्वर्ग नरक
दिन रात
प्रश्न 5. निम्नांकित शब्दों के पर्यायवाची लिखें:
उत्तर :
शब्द पर्यायवाची
आकाश आसमान, नभ, व्योम
चिड़िया पक्षी, खग, विहग
फूल पुष्प, समन, पुहुप
सूर्य भानु, रवि, दिनकर
पेड़ वृक्ष, पादप, तरू
प्रश्न 6. निम्नलिखित शब्दों का वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग-निर्णय करें :
भोर, सूरज, मोती, भूल, हवा, झील, तालाब, चाह, पलक
उत्तर : भोर – आज का भोर सुहावना था ।
सूरज – आकाश में सूरज चमक रहा है
मोती – मोती उजला होता है 1
भूल – मुझसे बड़ी भूल हुई, कि आपके यहाँ नही पहुँच सका ।
हवा – तेज हवा चल रही है ।
झील – झील काफी गहरा था।
तालाब – तालाब सूखा था ।
चाह – मेरी चाह ही खत्म हो गई है
पलक – पलक आँख की रक्षा करती है।
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