इस पोस्ट में हमलोग कक्षा 12 के हिन्दी के गद्य भाग के पाठ दो ‘उसने कहा था’ (Usne kaha tha kahani) का हिन्दी व्याख्या के साथ इसका सारांश पढ़ेंगे।
2. उसने कहा था
प्रस्तुत पाठ ‘उसने कहा था‘ चन्द्रधर शर्मा गुलेरी के द्वारा लिखा गया है। इस पाठ का नायक ‘लहना सिंह‘ है। इस पाठ में लहना सिंह के सच्चा प्रेम तथा उसके वीरता को बताया गया है। जिसमें आठ वर्ष की लड़की जिसका नाम होंरा होता है और बारह वर्ष का लड़का लहना सिंह होता है। वे दोनों अपने-अपने मामा के घर रहते हैं।
इन दोनों का मुलाकात अमृतसर के भीड़ भरे बाजार में होती है। लड़का, लड़की को टांगे के नीचे आने से बचाता है। उसके बाद वाले दिन दोनों दुकान में समान लेने आते हैं। लड़का-लड़की दोनों अपना-अपना सामान साथ-साथ लेकर चल दिए। कुछ दूर जाकर लड़के ने मुस्कुराकर पूछा- ‘क्या तेरी कुड़माई (मँगनी) हो गई है।‘ लड़की शर्माकर धत्त कहकर दौड़ गई। दूसरे-तीसरे दिन कभी शब्जी वाले के यहाँ तो कभी दूध वाले के यहाँ मुलाकात होती है। लड़का ने फिर वहीं सवाल किया, जवाब में उसे धत्त ही मिला। जब-जब लड़की ने धत्त कहा तो लहना सिंह का और प्रेम बढ़ता गया। अचानक से, एक दिन लहना सिंह के पूछने पर लड़की ने कहा दिया कि हाँ, मेरी कुड़माई हो गई है। यह सुनकर लहना सिंह का दिल टूट गया। साथ ही साथ वह अपना शुद्ध-बुद्ध खो बैठा। इसलिए घर वापस आते समय एक लड़के को नाले में ढकेल दिया। एक कुत्ता को पत्थर मारा और शब्जी वाले पर दूध गीरा दिया। एक औरत से अंधे की उपाधि पाया। अर्थात एक औरत से टकरा गया।
लहना सिंह उस लड़की से बहुत प्यार करता था, लेकिन ये बात सच थी कि लहना सिंह को उसका प्रेम नहीं मिल सका। फिर भी वे अपने हृदय में उसे बसाए रखा।
उसके बाद लहना सिंह सेना में भर्ती होता है। वह बहादूर तथा निडर व्यक्ति था। तभी तो वह युद्ध को पूरी तरह से समझकर उसमें भाग लिया। लड़की का विवाह सुबेदार हजारा सिंह से हो गया था।
सेना में भर्ती होने पर वजिरा सिंह और लहना सिंह में दोस्ती हो गयी। लहना सिंह को हजारा सिंह अपने घर बुलाते हैं। हजारा सिंह सुबेदार के पद पर थे। सुबेदार के घर जाने पर हजारा सिंह की पत्नी सुबादारीन लहना सिंह को देखकर चौंक जाती है। सुबेदारीन वहीं लड़की थी, जिससे लहना सिंह बचपन में बार-बार पूछा करता था कि क्या तुम्हारी कुड़माई (सगाई) हो गयी है। वो लहना सिंह को बुलाकर कहती है कि जिस तरह तुमने बचपन में मेरी जान बचायी थी उसी तरह मेरे पति और बेटे की रक्षा करना। सुबेदारीन के पति का नाम हजारा सिंह तथा बेटा का नाम बोधा सिंह था।
लहना सिंह ने उस वचन को इमान्दारी से निभाने का कसम खाया। प्रथम विश्व युद्ध के मोर्चे पर इंगलैंड की ओर से लहना सिंह, उसका दोस्त वजिरा सिंह, सुबेदार हजारा सिंह तथा बोधा सिंह युद्ध लड़ने के लिए जाते हैं। जर्मनी की सेना उनलोगों पर हमला कर देती है। लहना सिंह अपने जान पर खेलकर जर्मन सैनिक से लड़कर उसे हरा देता है और इनलोगों की रक्षा करता है। लहना सिंह बुरी तरह घायल हो जाता है। जब लड़ाई खत्म हो जाती है, तो उसको अपने बारह वर्ष की अवस्था की याद आने लगती है। अमृतसर के चौक पर की कहानी लहना सिंह, जब जमादार पद नियुक्त हुआ था, तो उस लड़की की याद नहीं आ रही थी। लेकिन जब उसका मृत्यु नजदिक आया तो सारी बातें याद बनकर आने लगती है।
युद्ध के दौरान हजारा सिंह और बोधा सिंह भी घायल हो जाते हैं। एम्बुलेंस इनलोगों को लेने आती है। एम्बुलेंस में कम जगह होने के कारण लहना सिंह घायल अवस्था में एम्बुलेंस पर खुद न बैठकर बोधा सिंह और हजारा सिंह को बैठा देता है। जब सुबेदार हजारा सिंह एम्बुलेंस में अपने बेटा के साथ जाने लगे, तो उनसे कहा कि जब घर पहुँचना तो सुबेदारीन से कह देना कि उसने जो कहा था, वह मैंने पूरा कर दिया। अगले दिन अखबार से पता चला कि जमादार लहना सिंह धावों से मर गया। इस तरह से लहना सिंह अपनी जान गँवाकर अपना वादा निभाया।
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