इस पोस्ट में हम बिहार बोर्ड के कक्षा 10 इतिहास के पाठ आठ ‘प्रेस संस्कृति और राष्ट्रवाद (press sanskriti aur rashtravad class 10th solutions and notes)’ के नोट्स और सभी प्रश्नों के उत्तर को पढ़ेंगे।
8. प्रेस संस्कृति और राष्ट्रवाद
आज के वर्तमान युग में हम प्रेस के बिना आधुनिक विश्व की कल्पना नहीं कर सकते हैं।
चाहे ज्ञान का क्षेत्र हो या सूचना का, मनोरंजन का हो या रोजगार का, इससे प्रत्यक्ष रूप से दुनिया संचालित हो रहा है।
छापाखाना का आविष्कार का महत्व इस भौतिक संसार में आग, पहिया और लिपि की तरह है जिसने अपनी उपस्थिति से पूरे विश्व की जीवन शैली को एक नया आयाम प्रदान किया।
ब्लॉक प्रिंटिंग- स्याही से लगे काठ के ब्लॉक या तख्ती पर काजग को रखकर छपाई करने की विधि को ब्लॉक प्रिंटिंग कहते हैं।
मुद्रण का इतिहास गुटेनवर्ग तक :
मानव सभ्यता के आदिकाल में मनुष्य जो देखता था उसे अपनी स्वाभाविक बुद्धि तथा अनुभव के अनुसार विभिन्न प्रकार से अंकित करने का प्रयास करता था।
बाद में अपने ज्ञान को विभिन्न पत्रकों पर करने लगा। 105 (A.D) ई० में टस्-प्लाई-लून (चीनी नागरिक) ने कपास एवं मलमल की पट्टियों से कागज बनाया।
मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई। 712 ई० तक यह चीन के सीमित क्षेत्रों में फैल गया।
760 ई० तक इसकी लोकप्रियता चीन और जापान में काफी बढ़ गई।
ब्लॉक प्रिंटिक का उपयोग अब पुस्तकों के पृष्ठ बनाने में होने लगा।
मुद्रण कला के आविष्कार और विकास का श्रेय चीन को जाता है।
1041 ई० में एक चीनी व्यक्ति पि-शेंग ने मिट्टी के मुद्रा बनाए।
चीन में 16वीं सदी तक सिविल सेवा की परीक्षा देने वालों की संख्या काफी बढ़ गई। जिससे पुस्तकों की माँग में काफी वृद्धि हुइ।
19 वीं सदी तक आते-आते मांग को पूरा करने हेतु शंघाई प्रिंटिंग-संस्कृति का नया केन्द्र बन गया और हाथ की छपाई की जगह यांत्रिक छपाई ने ले ली।
यूरोप में आरंभ-गुटेनवर्ग की भूमिका
मुद्रण कला का आविष्कार पूरब में हुआ लेकिन इसका विकास यूरोप में अधिक हुआ।
इसका मुख्य कारण चीन, जापनी और कोरियन भाषा में 40 हजार से अधिक वर्णाक्षर थे। सभी वर्णों का ब्लॉक बनाकर उपयोग करना कठिन था। जबकि रोमन लिपि में अक्षरों की संख्या कम होने के कारण इसका विकास अधिक हुआ।
13वीं सदी के अंत में रोमन मिशनरी और मार्कोपोलो द्वारा सर्वप्रथम ब्लॉक प्रिंटिंग के नमूने यूरोप पहूँचे।
1336 में प्रथम पेपर मिल की स्थापना जर्मनी में हुई।
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योहानेस गुटेनबर्ग- टाइप के माध्यम से मुद्रण विद्या का आविष्कारक थे। वे जर्मनी के मेंज के रहने वाले थे।। इन्होनें सन् 1439 में प्रिंटिंग प्रेस की रचना की जिसे एक महान आविष्कार माना जाता है। इनके द्वारा छापी गयी बाइबल गुटेनबर्ग बाइबिल के नाम से प्रसिद्ध है।
गुटेनवर्ग और प्रिंटिग प्रेस :
जर्मनी के मेंजनगर में गुटेनवर्ग ने कृषक-जमींदार-व्यापारी में जन्म लिया था। वह बचपन से ही तेल और जैतून पेरनेवाली मशीनों से परिचित था। गुटेनवर्ग ने अपने ज्ञान एवं अनुभव से टुकड़ों में विखरी मुद्रण कला के ऐतिहासिक शोध को संगठित एवं एकत्रित किया तथा टाइपों के लिए पंच, मेट्रिक्स, मोल्ड आदि बनाने पर योजनाबद्ध तरीके से कार्यारंभ किया।
मुद्रा बनाने हेतु उसने सीसा, टिन और विसमथ धातुओं से उचित मिश्र-धातु बनाने का तरीका ढूंढ़ निकाला।
एक सुस्पष्ट, सस्ता एवं शीघ्र कार्य करनेवाला गुटेनवर्ग का ऐतिहासिक मुद्रण शोध 1440 वें वर्ष में शुरू हुआ, जब गुटेनवर्ग को फस्ट नामक सुनार से बाइबिल छापने का ठेका प्राप्त हुआ।
मुद्रण क्रांति का बहुआयामी प्रभाव
छापखाने की संख्या में वृद्धि के फलस्वरूप पुस्तक निर्माण में अप्रत्यासित वृद्धि हुई। 15वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक यूरोपीय बाजार में लगभग 2 करोड़ मुद्रित किताबें आई। जिसकी संख्या 16वीं शताब्दी तक 20 करोड़ हो गई।
मुद्रण क्रांति के फलस्वरूप किताबें समाज के सभी तबकों तक पहुँच गई।
साक्षरता बढ़ाने हेतु पुस्तकों को रोचक तस्वीरों, लोकगीत और लोक कथाओं से सजाया जाने लगा। पहले जो लोग सुनकर ज्ञानार्जन करते थे अब पढ़कर भी कर सकते थे। पढ़ने से उनके अंदर तार्किक क्षमता का विकास हुआ।
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प्रिंट के प्रति कृतज्ञ लूथर ने कहा- ‘मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है सबसे बड़ा तोहफा’
मुद्रण क्रांति से कम पढ़े-लिखे लोग धर्म की अलग-अलग व्याख्याओं से परिचित हुए।
अलग-अलग सम्प्रदाय के चर्चों ने स्कूल स्थापित कर गरीब तबके के लोगों को शिक्षित करना शुरु किया।
क्रांतिकारी दार्शनिकों के लेखन ने परंपरा, अंधविश्वास और निरंकुशवाद की आलोचना पेश की।
परंपरा पर आधारित सामाजिक व्यवस्था को दुर्बल किया गया।
छपाई ने वाद-विवाद की नई संस्कृति को जन्म दिया।
तकनीकी विकास
18वीं शदी के अंत तक प्रेस धातु के बनने लगे थे। 19वीं शदी के मध्य तक न्यूयार्क के रिचर्ड एम. हो. ने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस को कारगर बना लिया था। इससे प्रतिघंटे 8000 ताव छापे जा सकते थे।
शदी के अंत तक ऑफसेट प्रेस आ गया था, जिससे छः रंगों में छपाई एक साथ संभव थी।
20वीं शताब्दी के प्रारंभ से बिजली से चलनेवाले छापेखाने ने तेजी से काम करना शुरु कर दिया।
पुस्तकें सस्ती और रोचक कवर तथा पृष्ठ के साथ पाठकों तक पहुँचने लगी।
इन पुस्तकों से पहले लोग पाण्डुलिपि के माध्यम से ज्ञान हासिल करते थे।
भारत में प्रेस का विकास
भारत में छापखाना के विकास के पहले हाथ से लिखकर पाण्डुलिपियों को तैयार करने की पुरानी एवं समृद्ध परम्परा थी। यहाँ संस्कृत, अरबी और फारसी साहित्य की अनेकानेक तस्वीर युक्त सुलेखन कला से परिपूर्ण साहित्यों की रचनाएँ होती रहती थी।
प्रिंटिंग प्रेस सबसे पहले भारत में पुर्तगाली धर्मप्रचारकों द्वारा 16वीं शदी में लाया गया।
भारत में प्रेस ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध भारतीयों की भावना को एक रूप देने, उनकी नीतियों और शोषण के विरूद्ध लोगों में जागृति लाने तथा देश प्रेम की भावना को जागृत कर राष्ट्रनिमार्ण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया।
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समाचार पत्रों की स्थापना
आधुनिक भारतीय प्रेस का प्रारंभ 1766 में विलियम बोल्टस द्वारा एक समाचार पत्र के प्रकाशन से हुआ।
1780 में जे. के. हिक्की ने ‘बंगाल गजट’ नामक समाचार पत्र प्रकाशित करना प्रारंभ किया।
नवम्बर 1780 में प्रकाशित ‘इंडिया गजट’ दूसरा भारतीय पत्र था।
18वीं सदी के अंत तक बंगाल में ‘कलकत्ता कैरियर’, एशियाटिक मिरर तथा ओरियंटल स्टार, बम्बई गजट तथा हैराल्ड और मद्रास कैरियर, मद्रास गजट आदि समाचार पत्र प्रकाशित होने लगे।
भारतीयों द्वारा प्रकाशित प्रथम समाचारपत्र 1816 में गंगाधर भट्टाचार्य का साप्ताहिक ‘बंगाल गजट’ था।
1821 में बंगला में ‘संवाद कौमुदी’ तथा 1822 में फारसी में प्रकाशित ‘मिरातुल’ अखबार का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इन समाचार पत्रों का संस्थापक राजा राम मोहन राय थे, जिन्होंने इन्हें सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन का हथियार भी बनाया।
1822 में बम्बई से गुजराती भाषा में ‘दैनिक बम्बई’ समाचार निकलने लगे।
द्वारकानाथ टैगोर, प्रसन्न कुमार टैगोर तथा राम मोहन राय के प्रयास से 1830 में बंगदत की स्थापना हुई।
1831 में ‘जामे जमशेद’ 1851 में ‘गोफ्तार’ तथा ‘अखबारे सौदागर’ का प्रकाशन प्रारंभ हुआ।
प्रेस की विशेषताएँ- समयानुसार बदलते परिप्रेक्ष्य में
भारत में दो प्रकार के प्रेस थे- एंग्लो इंडियन प्रेस और भारतीय प्रेस
एंग्लो इंडियन प्रेस की प्रकृति और आकार विदेशी था। यह भारतीयों में ‘फुट डालो और शासन करो’ का पक्षधर था। यह दो सम्प्रदायों के बीच एकता के प्रयास का घोर आलोचक था।
एंग्लो इंडियन प्रेस को विशेषाधिकार प्राप्त था। सरकारी खबरें और विज्ञापन इसी को दिया जाता था। सरकार के साथ इसका घनिष्ठ संबंध था।
यह भारतीय नेताओं पर ‘राज’ के प्रति गैर वाफादारी का आरोप लगाया जा रहा था।
भारतीय प्रेस अंग्रेजी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होते थे।
19वीं तथा 20वीं सदी में राममोहन राय, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, बाल गंगाधर तिलक, दादा भाई नौरोजी, जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गाँधी, मुहम्मद अली, मौलाना आजाद आदि ने भारतीय प्रेस को शक्तिशाली और प्रभावकारी बनाया।
अंग्रेजों द्वारा प्रकाशित समाचारपत्र में से टाइम्स ऑफ इंडिया, स्टेट्समैन, इंग्लिसमैन, मद्रासमेल, पायनियर थे।
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भारतीयों द्वारा प्रकाशित एवं संपादित पत्र
1858 में ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने ‘सोम प्रकाश’ का प्रकाशन साप्ताहिक के रूप में बंगला में प्रारंभ किया। इसने नीलहे किसानों के हितों का जोरदार समर्थन किया।
‘हिन्दू पैट्रियट’ का भी संपादन विद्यासागर ने ही किया।
केशवचन्द्र सेन ने ‘सुलभ समाचार’ का बंगला में दैनिक प्रकाशन किया।
मोतिलाल घोष के संपादन में 1868 में अंग्रेजी-बंगला साप्ताहिक के रूप में अमृत बाजार पत्रिका का प्रेस के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है।
1878 में लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए यह रातों-रात अंगेजी में प्रकाशित होने लगा।
बंगाल में उग्र राष्ट्रवाद को फैलाने का काम अरविंद घोष और वारींद्र घोष ने जुगांतर तथा वंदेमातरम् के माध्यम से किया।
1872 में भारतेन्दु द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका देश प्रेम और समाजसुधार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मोतिलाल नेहरू ने 1919 में इंडिपेंडेंस, शिव प्रसाद गुप्त ने हिन्दी दैनिक आज, के. एम. पन्निकर ने 1922 में हिन्दुस्तान टाइम्स का संपादन किया।
महात्मा गाँधी ने ‘यंग इंडिया’ तथा ‘हरिजन’ के माध्यम से राष्ट्रवादी आंदोलन का प्रचार किया।
समाचार पत्र राष्ट्रीय आंदोलन को बढ़ावा देने के साथ शिक्षा, आर्थिक विकास, औद्योगीकरण और श्रम आंदोलन को भी प्रोत्साहित किया।
1912 में मौलाना आजाद के द्वारा ‘अल हिलाल तथा 1913 में ‘अल बिलाग’ का संपादन उर्दू में किया गया।
उर्दू समाचार अंग्रजी राज का घोर आलोचक थी। साथ ही राष्ट्रवादी भावनाओं को बढ़ाने का कार्य किया।
प्रेस का राष्ट्रीय आंदोलन में भूमिका तथा प्रभाव
प्रेस के माध्यम से राष्ट्रीय नेताओं ने अंग्रेजी राज की शोषणकारी नीतियों का पर्दाफाश करते हुए जनजागरण फैलाने का कार्य किया।
विभिन्न प्रकार के अंग्रजी नीतियों के प्रति व्यापक असंतोष को सरकार के समक्ष पहुँचाने का कार्य प्रेस ने ही किया।
अंग्रेजों के द्वारा भारत का जो आर्थिक शोषण हो रहा था इसके विरुद्ध प्रेस ने आवाज उठाई।
भारतीय नेताओं ने अपनी आवाजों को जनता तक पहुँचाने के लिए प्रेस का सहारा लिया।
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सामाजिक सुधार के क्षेत्र में, प्रेस ने सामाजिक रूढ़ियों, रीति-रिवाजों, अंधविश्वास तथा अंग्रेजी सभ्यता के प्रभाव को लेकर लगातार आलोचनात्मक लेख प्रकाशित हुए।
दक्षिण अफ्रिका में गाँधी के प्रयासों का भारतीय प्रेस में उल्लेख किया।
देश के राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा देने एवं राष्ट्र निमार्ण में भी प्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
सम्पूर्ण देश के लोगों के बीच सामाजिक कुरीतियां को दूर करने, राजनितिक एवं सांस्कृतिक एकता स्थापित करने का कार्य भी किया गया।
प्रेस के विरूद्ध प्रतिबंध
समाचार पत्रों के नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने कई तरह के प्रतिबंध लगाए।
समाचारपत्र का संपादक इंगलैंड का होता था, तो उसे वापस भेज दिया जाता था। लेकिन भारतीय संपादकों के साथ ऐसा नहीं कर सकती थी।
जिसके कारण समाचार पत्रों को नियंत्रित करने के लिए कई अधिनियम बनाए गए।
1799 का समाचार पत्रां का पत्रेक्षण अधिनियम- लार्ड वेल्जली ने फ्रांस के आक्रमण के भय से समाचार पत्रों पर सेन्सर बैठा दिया। इस अधिनियम के अनुसार समाचार पत्र को संपादक, मुद्रक एवं स्वामी का नाम स्पष्ट रूप से छापना था। प्रकाशक को प्रकाशित करने से पहले सरकार के सचिव से दिखा कर अनुमति लेनी पड़ती थी।
1823 का अनुज्ञप्ति अधिनियम- 1823 में जॉन एडम्स जनरल बनते ही अपने प्रतिक्रियावादी विचारों को इस अधिनियम में व्यक्त किया। इसके अनुसार मुद्रणालय स्थापित करने के लिए अनुज्ञप्ति लेनी आवश्यक थी। बिना अनुज्ञप्ति 400 रूपये दण्ड अथवा करावास की सजा का प्रावधान था।
भारतीय समाचार पत्रों की स्वतंत्रता 1835- 1823 के नियम को रद्द कर चार्ल्स मेटकॉफ ने भारतीय समाचार पत्रों के ‘मुक्ति दाता’ के रूप में विकसित हुए। 1856 तक यह कानुन चलता रहा।
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट 1878 : इस अधिनियम के द्वारा समाचारपत्रों को अधिक नियंत्रण में लाने का प्रयास किया गया। इस अधिनियम के द्वारा यह कहा गया कि किसी समाचारपत्र को प्रकाशित करने की आज्ञा इस शर्त पर दिया जाए कि वे ब्रिटिश राजा के विरूद्ध भड़काने वाला कोई समाचार पत्र नहीं छापेंगे।
इस अधिनियम को लार्ड लिटन ने लाया था।
यह अधिनियम देशी भाषा समाचार पत्रों के लिए मुँह बन करने वाला और भेदभावपूर्ण था।
इस अधिनियम को अगला वायसराय लार्ड रिपन ने समाप्त कर दिया।
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1908 का समाचार पत्र अधिनियम- लार्ड कर्जन के नीतियों के विरूद्ध उग्र राष्ट्रवाद की भावनाएँ भड़क रही थी। इन्हें दबाने के लिए 1908 का न्युज पेपर एक्ट पास किया गया। इसके अनुसार किसी समाचार पत्र की ऐसी सामग्री जिससे हिंसा अथवा हत्या की प्रेरणा मिले, उसकी संपत्ति को सरकार जब्त कर सकती थी।
1951 का समाचार पत्र अधिनियम- 1951 में सरकार की संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के संसोधन और समाचार पत्र अधिनियम पारित कर अब तक के सभी अधिनियमों को रद्द कर दिया गया। नए कानुन के माध्यम से सरकार मुद्रणालय को आपिजनक विषय प्रकाशित करने पर जब्त कर सकती थी। प्रकाशकों की जुरी द्वारा परीक्षा मांगने का अधिकार दे दिया गया। यह अधिनियम 1956 तक लागु रहा।
कई पत्रकार संगठनों द्वारा इसका विरोध करने पर सरकार ने न्यायाधीश जी. एस. राजाध्यक्ष की अध्यक्षता में एक प्रेस कमीशन नियुक्त किया। इसने 1954 में अखिल भारतीय समाचार परिषद् के गठन सहित कई सुझाव दिए जो सरकार द्वारा मान लिए गये।
स्वातंत्र्योर भारत में प्रेस की भूमिका – आधुनिक दौर में प्रेस, साहित्य और समाज की समृद्ध चेतना की धरोहर है और पत्र-पत्रिकाएँ दैनिक गतिशीलता की लेखा है। प्रेस ने समाज में नवचेतना पैदा कर सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं दैनिक जीवन में क्रांति का सूत्रपात किया। प्रेस ने सामाजिक बुराइयों दहेज प्रथा, विधवा विवाह, बालिका वध, बाल-विवाह जैसे मुद्दों को उठाकर समाज के कुप्रथाओं को दूर करने का प्रयास किया। यह समाज को वैज्ञानिक अनुसंधानों, वैज्ञानिक उपकरणों एवं साधनों से परिचित करता है। पत्रकार विज्ञान के वरदान और अभिशाप को घटनाओं के माध्यम से समाज के सामने लाते हैं। ताकि सामान्य लोग भी विश्व कल्याण के संदर्भ में सोच सके। आज प्रेस लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने हेतु सजग प्रहरी के रूप में हमारे सामने खड़ा है।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
- छापाखाना :- छापाखाना का अविष्कार का महत्व इस भौतिक संसार में आग, पहिया और लिपि की तरह है। जिसने अपनी उपस्थिति से पूरे विश्व के जीवन शैली को एक नया आयाम प्रदान किया।
- गुटेनबर्ग :- गुटेनबर्ग जर्मनी के जन्म लिया था। वह बचपन से ही तेल और जैतून पर पड़ने वाली मशीनों से परिचित था। गुटेनबर्ग ने अपनी ज्ञान एवं अनुभव टुकड़ों में बिक्री, मुद्रण कला के ऐतिहासिक शोध को एकत्रित किया। मुद्रा बनाने हेतु उसने सीमा, टिन और बीसपथ हेतु उचित मिश्र धातु बनाने का तरीका ढूंढ़ निकाला।
- बाईबिल :- गुटेनबर्ग को फर्स्ट नामक सुनार से बाइबल छापने का ठेका प्राप्त हुआ। पुराने 42 लाइन एवं 36 लाइन के बाइबल गुटेनबर्ग द्वारा छापे गए, 421 लाइन वाले बाइबल का मुद्रण गुटेनबर्ग द्वारा शुरू किया गया। फर्स्ट और शुओफर द्वारा उसे पूर्ण किया गया।
- रेशम मार्ग :- लकड़ी के ब्लॉक द्वारा होनेवाली मुद्रण कला प्रशिया – सीरिया मार्ग जिसे रेलमार्ग के नाम से जाना जाता है।
- यंग इंडिया :- गाँधी जी ने यंग इंडिया तथा ‘हरिजन’ के माध्यम से अपने विचारों एवं राष्ट्रवादी आंदोलन का प्रचार किया। सरकार को अपने राजनैतिक कार्यक्रम से अवगत कराया तथा भारत अवाम को एक बड़ा आंदोलन किया।
- मराठा :- बाल गंगाधर तिलक के संपादन में 1881 ई० में मुंबई से अंग्रेजी भाषा में मराठा की शुरुआत हुई। इनका जनमानस पर व्यापक प्रभाव पड़ा।
- वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट :- लीटन ने 1878 के देसी भाषा समाचार पत्र अधिनियम के माध्यम से समाचार पत्रों को अधिक नियंत्रण में लाने का प्रयास किया। इस अधिनियम के माध्यम से जिला दंडनायक बंधनपत्र एवं जमानत पर किसी समाचार पत्र को प्रकाशित करने की आज्ञा इस तर्ज पर देखी ताज ग्राउंड के विरुद्ध भड़काने वाले कोई समाचार नहीं छापेंगे।
- सर सैयद अहमद :- राष्ट्रीय राजनीति के में सर सैयद अहमद के बदते प्रभाव कांग्रेस समर्थित राष्ट्रीय आंदोलन एवं अंग्रेजी राज्य से मुसलमानों को सम्बन्ध करने के लिए प्रेरित किया। सर सैयद अहमद आरंभ में राष्ट्रवादी थे। बाद में दृष्टिकोण अपनाया और ब्रिटिश सरकार के पक्ष में मुसलमानों से सहयोग की अपील की उन्होंने अलीगढ़ जनरल नामक पत्र निकाले।
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- प्रोस्टेंट वाद :- प्रोटेस्टेट वाद का प्रवर्तक मार्टिन लूथर थे उसने रोमन कैथोलिक चर्च की कुरीतियो की आलोचना की। इससे कैथोलिक चर्च की सत्ता से लोगों का विश्वास उठने लगा और प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार आंदोलन की शुरुआत हुई।
- मार्टिन लूथर :- मार्टिन लूथर ने रोमन कैथोलिक चर्च की आलोचना करते हुए अपनी 95 स्थापना लेकर ब्रिटेन वर्ग गिरजा घर के दरवाजे पर टांग दी गई। लूथर ने चुनौती भी दी। लूथर के लेकर आम लोगों में काफी लोकप्रिय हुआ और उसने नेतृत्व में प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार आंदोलन की शुरुआत हुई।
लघु उत्तरीय प्रश्न
- गुटेनबर्ग ने मुद्राणयंत्र का विकास कैसे किया?
उत्तर :- गुटेनबर्ग ने अपने ज्ञान एवं अनुभव से टुकड़ों में बिखरी मुद्रण कला के ऐतिहासिक शोध के संगठित किया। टाइपो के लिए पंच, मेट्रिक्स, मोल्ड आदि बनाने का कार्य किया। उसने शीशा, टिन और बिसमर्थ धातुयों से मिश्र धातु बनाने का तरीका ढूंढ़ा टिन का उपयोग उसकी कठोरता एवं गलाने के गुणों से किया। गुटेनवर्ग का ऐतिहासिक मुद्राणयंत्र शोध 1440वे वर्ष मे आरम्भ हुआ।
- छापाखाना यूरोप मे कैसे हुआ ?
उत्तर :- लकड़ी के ब्लॉक् द्वारा होनेवाले मुद्राण कला पर्सीयो-सीरिया मार्ग से (रेशम मार्ग) व्यापारियों द्वारा यूरोप मे सर्वप्रथम रोम मे हुई 13वी शताब्दी के अंतिम रोमन लिपि मे लकड़ी और धातु से बने टाइपो का प्रसार तेजी से हुआ। कागज बनाने की कला 11वीं सदी मे पूरब से यूरोप पहुँची 1475 ई० मे सर विलियन कैप्सन मुद्रण कला को इंग्लैंड मे लाये। पुर्तगाली ने इसकी शुरुआत 1544 ई० मे की।
- इनक्विजिशन से आप क्या समझते हैं ? इसकी जरूरत क्यों पड़ी ?
उत्तर :- धर्म विरोधी विचारों को दबाने के लिए कैथोलिक चर्च में इनक्विजिशन आरंभ किया। जिसके माध्यम से विरोधी विचारधारा के प्रकाशकों और पुस्तकों विक्रेताओं पर प्रतिबंध लगाया गया । इसकी जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि छपाई से नए बौद्धिक माहौल का निर्माण हुआ था। आंदोलन के नए विचारों का फैलाव बड़ी तेजी से आम लोगों तक पहुँचा। इसे कम पढ़े लिखे लोगों भी धर्म का अलग-अलग परिचित हुए। बिपरीत बिचार आने से कैथोलिक चर्च क्रूद्ध हो गया। जिसके कारण इनक्विजिशन शुरू किया।
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- पांडुलिपि क्या है ? इसकी क्या उपयोगिता है ?
उत्तर :- भारत में छापाखाना के विकास के पहले हाथ से लिखकर पांडुलिपि को तैयार करने की पुरानी परंपरा थी। संस्कृत, अरबी एवं फारसी साहित्य की रचनाएँ होती रहती थी। मजबूती प्रदान करने के लिए जल्द भी किया गया था। पांडुलिपिया काफी नाजुक और महंगी होती थी। पांडुलिपियों की बनावट कठिन होने के कारण यह आम जनता के पहुँच से बाहर थी।
- लॉर्ड लिटन राष्ट्रीय आंदोलन को गतिमान बनाया कैसे ?
उत्तर :- लॉर्ड लिटन अंग्रेजी समाचार पत्र सरकार का समर्थन था। लेकिन देशी समाचार पत्रों के समाजवादी नीतियों के विरुद्ध राष्ट्रवादी भावनाओं को उत्पन्न किया। इसने 1878 ई० में देशी भाषा समाचार पत्रों को अधिक नियंत्रण में लाने का प्रयास किया। राष्ट्रीय स्तर पर इसका मुखर विरोध हुआ। जिससे राष्ट्रीयता की भावना पनपी और उबाल लाने का काम किया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
- मुद्रण क्रांति ने आधुनिक विश्व को कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर :- छापाखाना की संख्या में वृद्धि के परिणाम पुस्तक निर्माण में वृद्धि हुई। 15 वीं शताब्दी तक यूरोपीय बाजार में लगभग दो करोड़ मुद्रित किताबें आई जिसकी संख्या 16वी सदी तक 20 करोड़ हो गई। आम लोगों की जिंदगी ही बदल दी आम लोगों का जुड़ाव, सूचना, ज्ञान, संस्था, और सत्ता से नजदीकी स्तर पर हुआ जिसके कारण लोगों में बदलाव आया।
लूथर के लेख आम लोगों में काफी लोकप्रिय हुए और प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार आंदोलन की शुरुआत हुई। धर्म सुधार आंदोलन के नए विचारों का फैलाव तीव्र गति से आम लोगों तक पहुँचा।
1820 में क्रांति के प्रगति का प्रकाश यूरोप में फैल चुका था। अब लोगों में आलोचनात्मक सवालिया विकसित हुआ। सार्वजनिक दुनिया ने सामाजिक क्रांति को जन्म दिया।
- 19वीं सदी में भारत में प्रेस के विकास को रेखांकित करें।
उत्तर :- 19वीं शताब्दी की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। भारतीय द्वारा प्रकाशित प्रथम समाचार पत्र 1816 में गंगाधर का सप्ताहिक ‘बंगाल गजट’ था। 1818 में ब्रिटिश नामक पत्रकार की सेवा की।
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1821 ई० बंगाल में संवाद कौमुदी तथा 1822 फारसी में प्रकाशित मीरापुर अखबार के साथ राष्ट्रीय समाचार पत्रों का आरंभ हुआ। 1822 ई० में मुंबई से गुजराती भाषा में दैनिक मुंबई समाचार निकलने लगे। राममोहन राय के प्रयास से 1830 ई० में बंगदत की स्थापना हुई। 1831 ई० में जामे में जमशेद 1851 ई० में गोफ्तार तथा अखबारे सौदागर का आरंभ हुआ।
19वीं शताब्दी अंग्रेजों द्वारा समर्थित गई समाचार पत्र के जिसमें टाइम्स ऑफ इंडिया। 1861 ई० स्टेटमेंट। 1875 ई० इंग्लिश मैन कोलकाता से है। 1865 ई० में इलाहाबाद से और 1876 ई० में सीवील और गजट लाहौर से प्रकाशित होने लगे थे।
1858 इसी में ईश्वर चंद्र विद्यासागर प्रकाशन के रूप में बंगाल में आरंभ किया। 1875-75 ई० के बीच इस पत्र के इंडियन मिरर का प्रकाश आरंभ किया। मोतीलाल घोष के संपादन में 1868 ई० से अंग्रेजी बंगला सप्ताहिक रूप में अमृत बाजार का महत्वपूर्ण स्थान था। 1899 ई० में अंग्रेजी मासिक हिंदुस्तान रिव्यू की स्थापना की।
- भारतीय प्रेस की विशेषताओं को लिखें।
उत्तर :- 19वीं शताब्दी में जागरूकता के कारण सामान्य जनता के कारण जमींदारों तक की रूचि राजनीति में नहीं थी। समाचार पत्रों का वितरण कम था। फिर समाचार पत्र द्वारा न्यायिक निर्णय धार्मिक और जातीय भेदभाव की आलोचना करने से धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलन को बल मिला।
1857 ई० के विरोध के समाचार पत्रों का विभाजन किया। भारत में दो तरह के प्रेस थे। एंग्लो इंडियन प्रेस और भारतीय प्रेस। एंग्लो इंडियन की प्राकृतिक और आकाश बिदेशी तथा यह भारतीय में फूट डालो और शासन करो इसके द्वारा भारतीय नेताओं पर राज्य के प्रति गैर वफादारी का सदैव आरोप लगाया जाता रहा।
19 वीं से 20 वीं सदी में राजा राममोहन राय, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, बाल गंगाधर तिलक, दादाभाई नरोजी, जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी, मोहम्मद अली, मौलाना आजाद, आदि। प्रेस के शक्तिशाली तथा प्रभाव कारी बनाया।
- राष्ट्रीय आंदोलन को भारतीय प्रेस ने कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर :- प्रेस में राष्ट्रीय आंदोलन के हर पक्ष चाहे वह राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक हो या संस्कृतिक सब को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया। प्रेस के माध्यम से राष्ट्रीय नेताओं ने ब्रिटिश सरकार की नीति में जागरण फैलाने का कार्य किया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना से पूर्व समाचार ने राजनीतिक शिक्षा देने का दायित्व अपने ऊपर लिया। देश में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार द्रुतगति से हुआ। नई शिक्षा नीति के प्रति व्यापक और संतोष को सरकार का कार्य प्रेस ने नहीं किया। अंग्रेजों द्वारा जो भारत का आर्थिक शोषण हो रहा था। इसके विरूद्ध भी प्रेस ने आवाज उठाई।
दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी के प्रयासों का भारतीय प्रेस ने उल्लेख किया गया। रूस जापान युद्ध 1904-5 ई० में रूस की पराजय को समाचार और राष्ट्रवाद बढ़ाने का काम किया। देश के राष्ट्रीय आंदोलन को नई दिशा एवं निर्माण में प्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रही। संपूर्ण देश के लोग के बीच सामाजिक कुरीतियों को दूर करने राजनीतिक एवं सांस्कृतिक एकता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- मुद्रण यंत्र की विकास यात्रा को रेखांकित करें। या आधुनिक स्वरूप में कैसे पहुंचा ?
उत्तर :- मानव लेखन सामग्री के अविष्कार के चट्टानों तथा गुफाओं को खुदाई करता था तथा मिट्टी की टिकिओ का उपयोग करता था। 105 ई० मे टस लाई लून ने कपास एवं कागज बनाया। इसकी शुरुआत 594 ई० में लकड़ी के ब्लॉक के माध्यम से की गई। 712 ई० में चीन के समिति क्षेत्रों में फैल गया। 760 ई० चीन और जापान में 10 वीं सदी तक ब्लॉक प्रिंटिंग की प्रक्रिया पत्र भी छापे गए।
1336 ई० में प्रथम पेपर मिल की स्थापना जर्मनी में हुई। जिसे 1430 ई० के दशक में स्ट्रेसवर्ग के योगदान गुटेनबर्ग ने पूरा किया।
1475 ई० में सर विलियम कैक्सटन मुद्रणकला को इंग्लैंड में लाए। तथा वेस्ट मिनिस्टर कस्बे में उनका प्रथम प्रेस स्थापित हुआ। पुर्तगाल में इसकी शुरुआत 1544 ई० में हुई। यह आधुनिक रूप में विश्व के अन्य देशों में पहुँची।
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