Bihar Board Class 9 Hindi शिक्षा में हेर-फेर (Shiksha Me Her Pher Class 9th Hindi Solutions)Text Book Questions and Answers
12. शिक्षा में हेर-फेर
पाठ का सारांश
महान् शिक्षाशास्त्री एवं साहित्यकार रवींद्रनाथ टैगर ने’शिक्षा में हेर-फेर’ शीर्षक निबंध में भारतीय शिक्षा प्रणाली की खामियों का उजागर किया है। उनका मानना है कि मानव-जीवन का उद्देश्य निश्चित नियमों में आबद्ध करदेना नहीं होता. बल्कि सर्वतोन्मुखी विकास करना होता है। किंत दषित शिक्षा-प्रणाली केकारण बच्चों को आवश्यक शिक्षा के साथ स्वाधीनता के पाठ का अवसर नहीं दियाजाता, जिस कारण बच्चे की चेतना का विकास नहीं हो पाता और आयु बढ़ने पर भी . बुद्धि की दृष्टि से वह बालक ही रह जाता है। लेखक का कहना है कि हमारी शिक्षाप्रणाली ऐसी है कि जिसमें परीक्षा पास कर लेना मुख्य उद्देश्य होता है। परिणामस्वरूप, हमारे बच्चों को व्याकरण शब्दकोष तथा भूगोल के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता। साथ ही दूसरे देशों में बालक जिस आयु में अपने नए दाँतों से बड़े आनंद से गन्ना चबाते हैं, उसी आयु में हमारे बच्चे स्कूल में मास्टर के बेंत हजम करते हैं तथा शिक्षक की कड़वी गालियों का रस लेते हैं जिस कारण बच्चों की मांसिक पाचन शक्ति का ह्रास होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि हमारी शिक्षा में बाल्काल से ही आनंद के लिए स्थान नही होता, हम उसी को कंठस्य करते है जो अति आवश्यक है। इससे काम तो हो जाता है, लेकिन उसका विकास नही हो पाता। लेखक की मान्यता है कि आनन्द के साथ पढ़ते रहने से पठन शक्ति बढ़ती है, सहज-स्वभाविक नियम से ग्रहण-शक्ति, धारणा-शक्ति तथा चिंतन शक्ति सबल होती है।
अंग्रेजी विदेशी भाषा है। शब्द-विन्यास तथा पद-विन्यास की दृष्टि से हमारी भाषा के साथ उसका कोई सामंजस्य नहीं है। इससे अपरिचित होने के कारण बच्चों के मन मेंकोई स्मृति जागृत नहीं होती, उनके सामने कोई चित्र प्रस्तुत नहीं होता और अंधभाव से उनका मन अर्थ को टटोलता रह जाता है। दूसरी बात यह भी है कि नीचे वर्गों में पढ़ाने वाले शिक्षक अल्पज्ञ होते हैं, वे न तो स्वदेशी भाषा अच्छी तरह जानते हैं, न अंग्रेजी।
Shiksha Me Her Pher Class 9th Hindi Solutions
वे बच्चों को पढ़ाने के बदले मन बहलाने का काम पूरी सफलता के साथ करते हैं । लेखक खेद प्रकट करते हुए कहता है कि मनुष्य के अंदर और बाहर दो उन्मुक्त विचार क्षेत्र हैं, जहाँ से वह जीवन, बल और स्वास्थ्य संचय करता है, वहाँ बालकों को एक विदेशी कारागृह में बंद कर दिया जाता है, जिस कारण साहित्य के कल्पना-राज्य का द्वार उनके लिए अवरूद्ध हो जाता है। लेखक का तर्क है.कि जिस शिक्षा में जीवन नहीं,आनंद, अवकाश या नवीनता नहीं, जहाँ हिलने-डुलने का स्थान नहीं, ऐसी शिक्षा की शुष्क, कठोर, संकीर्णता में क्या बालक कभी मानसिक शक्ति, चित्त का प्रसार या चरित्र की बलिष्ठता प्राप्त कर सकता है ? नहीं, कभी नहीं, वह तो केवल रटना, नकल करना तथा दूसरों की गुलामी करना ही सीख पाएगा। जीवन-यात्रा संपन्न करने के लिए चिंतन शक्ति एवं कल्पनाशक्ति का होना आवश्यक माना गया है। लेकिन हमारी शिक्षा में पढ़ने की क्रिया के साथ-साथ सोचने की क्रिया नहीं होती, क्योंकि बाल्यकाल से ही चिंतन और कल्पना पर ध्यान नहीं जाता । इसलिए बाल्यकाल से ही बच्चों की स्मरणशक्ति पर बल न देकर चिंतनशक्ति और कल्पनाशक्ति को स्वतंत्र रूप से परिचालित करने का अवसर उन्हें दिया जाना चाहिए, ताकि नीरस शिक्षा में जीवन का बहुमूल्य समय व्यर्थ न हो।
लेखक शिक्षा प्रणाली की आलोचना करते हुए कहता है. कि जिस प्रकार बर्बर जातियों के लोग शरीर पर रंग लगाकर अथवा शरीर के विभिन्न अंगों को गोदकर, गर्व का अनुभव करते हैं, जिससे उनके स्वाभाविक, स्वास्थ्य, उज्ज्वलता और लावण्य छिप जाते हैं, उसी तरह हम भी विलायती विद्या का लेप लगाकर दंभ करते हैं, किंतु यथार्थ आंतरिक जीवन के साथ उसका योग बहुत ही कम होता है। इसलिए बाल्यकाल से ही भाषा-शिक्षा के साथ भाव-शिक्षा की व्यवस्था हो और भाव के साथ समस्त जीवन-यात्रा नियमित हो, तभी हमारा व्यवहार सहज, मानवीय तथा व्यावहारिक हो सकता है। हमें अच्छी तरह समझना चाहिए कि जिस भाव से हम जीवन-निर्वाह करते हैं, उसके अनकल हमारी शिक्षा प्रणाली नहीं है। इतना ही नहीं, जिस समाज के बीच हमें जीवन बिताना है, उस समाज का कोई उच्च आदर्श हमें शिक्षा प्रणाली में नहीं मिलता। हमारी शिक्षा जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करती। हमारी यह शिक्षा किसी एक ही व्यवसाय तक सीमित रहती है. संपूर्ण जीवन के साथ उसका कोई संबंध नहीं होता । इसी कारण एक व्याक्त युरोपीय दर्शन, विज्ञान तथा न्यायशास्त्र का पंडित तो दूसरी ओर सारे का पोषण भी करता है । फलतः विद्या आर व्यवहार के बीच एक दुर्भेद्य व्यवधान उत्पन्न हा गया है। दोनों में सुसंलग्नता निर्मित नहीं हो पाती।
परिणाम यह होता है कि दोनों एक-दूसरे के विरोधी होते जाते हैं। हमारी पुस्तकीय विद्या उसकी विपरीत दिशा में जीवन को निर्देशित करते हमारे मन में उस विद्या के प्रति अविश्वास और अश्रद्धा का जन्म होता है। हम सोचते हैं कि वह विद्या एक सारहीन वस्तु है और समस्त यूरोपीय सभ्यता इसी मिथ्या पर आधारित है। इस तरह जब हम शिक्षा के प्रति अश्रद्धा व्यक्त करते हैं, तब शिक्षा भी हमारे जीवन से विमुख हो जाती है। हमारे चरित्र पर शिक्षा का प्रभाव विस्तृत परिमाण में नहीं पड़ता तथा शिक्षा और जीवन का आपसी संघर्ष बढ़ जाता है। इसलिए शिक्षा और जीवन में सामंजस्य निर्माण करने की समस्या आज हमारे लिए सर्वप्रधान विचारणीय विषय है। तात्पर्य कि भाषा शिक्षा के साथ-साथ भाव शिक्षा की वृद्धि न होने से यूरोपीय विचारों से हमारी यथार्थ संसर्ग नहीं होता। दूसरी बात, जिन लोगों के विचारों से मातृभाषा का दृढ़ संबंध नहीं होता वे अपनी भाषा से दूर हो जाते हैं और उसके प्रति उनके मन में अवज्ञा की भावना उत्पन्न होती है।
निष्कर्पतः हम इस तथ्य पर पहुँचते हैं कि हेर-फेर दूर होने से ही हमारा जीवन सार्थक होगा। हम शिक्षा का सही उपयोग नहीं कर पाते, इसी कारण हमारे जीवन में इतना दैन्य है, जबकि हमारे पास सब कुछ है। इसलिए हमें क्षुधा के साथ अन्न गीत के साथ वस्त्र, भाव के साथ भाषा और शिक्षा के साथ जीवन का सामंजस्य होने से समस्या अपने आप दूर हो जाएंगी।
अभ्यास के प्रश्न और उनके उत्तर
पाठ के साथ :
प्रश्न 1. बच्चों के मन की वृद्धि के लिए क्या आवश्यक है ?
उत्तर – बच्चों के मन की वृद्धि के लिए उन्हें स्वतंत्रतापूर्वक पढ़ने का अवसर मिलना चाहिए तथा उनके मन के प्रतिकूल किसी प्रकार की पाबंदी नहीं होनी चाहिए ।
प्रश्न 2. आयु बढ़ने पर भी बुद्धि की दृष्टि से वह सदा बालक ही रहेगा । कैसे ?
उत्तर- यदि आवश्यक शिक्षा के साथ स्वाधीनता के पाठ को नहीं मिलाया जाएगा तो बच्चे की चेतना का विकास नहीं होगा, जिस कारण आयु बढ़ने पर भी बुद्धि की दृष्टि से वह सदा बालक ही रहेगा। तात्पर्य कि बच्चों की इच्छा या रूचि के अनुकूल शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए ।
प्रश्न 3. बच्चों के हाथ में यदि कोई मनोरंजन की पुस्तक दिखाई पड़ी तो वह फौरन क्यों छीन ली जाती है ? इसका क्या परिणाम होता है ?
उत्तर – शिक्षा प्रणाली की खामियों के कारण बच्चों के पास समय का अभाव रहता है जिस कारण उन्हें सबक याद करने के अलावा कुछ करने का समय नहीं मिलता । इसीलिए बच्चों के हाथ में यदि कोई मनोरंजन की किताब दिखाई पड़ती है तो फौरन छीन ली जाती है। साथ ही, यथा- शीघ्र परीक्षा पास करके काम में जुट जाने की इच्छा भी रहती है । इसका परिणाम यह होता है कि बच्चे विषयगत जानकारी के अतिरिक्त व्यावहारिक ज्ञान से अपरिचित रह जाते हैं, जिससे मानसिक शक्ति का ह्रास हो जाता है ।
प्रश्न 4. ‘ हमारी शिक्षा में बाल्यकाल से आनंद का स्थान नहीं होता । ‘ आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है ?
उत्तर – हमारी शिक्षा में बाल्यकाल से ही आनंद के लिए स्थान नहीं होता, मेरी समझ से इसका मुख्य कारण दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है । बच्चों का पाठ्यक्रम ऐसा है कि जो नितांत आवश्यक है, उसी को कंठस्थ करने में समय खप जाता है । दूसरी बात है कि यहाँ बच्चों को बहुत कम उम्र में स्कूल में भर्ती करा दिया जाता है, जिस कारण उन्हें खेलने-कूदने अथवा आनंद से जीवन बिताने का अवसर नहीं मिलता ।
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प्रश्न 5. हमारे बच्चे जब विदेशी भाषा पढ़ते हैं तब उनके मन में कोई स्मृति जागृत क्यों नहीं होती है ?
उत्तर— अंग्रेजी विदेशी भाषा है । शब्द – विन्यास और पद – विन्यास की दृष्टि से हमारी भाषा के साथ उसका कोई सामंजस्य नहीं है । भाव पक्ष और विषय – प्रसंग भी विदेशी होते हैं। विदेशी भाषा से अपरिचित होने के कारण बच्चे धारणा उत्पन्न होने से पहले ही रटना आरंभ कर देते हैं। अंधभाव से उनका मन अर्थ टटोलता रह जाता है लेकिन उनके सामने कोई चित्र प्रस्तुत नहीं होता, क्योंकि उस शब्द के मूल भाव से अपरिचित होते हैं, इसी कारण बच्चे जब विदेशी भाषा पढ़ते हैं तब उनके मन में कोई स्मृति जागृत नहीं होती है।
प्रश्न 6. अंग्रेजी भाषा और हमारी हिंदी में सामंजस्य नहीं होने के कारणों का उल्लेख करें ।
उत्तर—अंग्रेजी विदेशी भाषा है। इसकी लिपि रोमन है, इसके व्याकरण और शब्दकोश में एकरूपता नहीं हैं, जबकि हिंदी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। इसके व्याकरण में एकरूपता है, यह हमारे देश की भाषा है। अतः विदेशी एवं स्वदेशी भाषा होने के अग्रजी एवं हिन्दी में सामंजस्य स्थापित नहीं हो पाता है।
प्रश्न 7. लेखक के अनुसार प्रकृति के स्वराज्य में पहुँचने के लिए क्या आवश्यक है ?.
उत्तर—लेखक के अनुसार प्रकृति के स्वराज्य में पहुँचने के लिए अवकाश आवश्यक है। इस अवकाश की स्थिति में बच्चे विभिन्न प्रकार के क्रियाकलापों द्वारा मन बहलाते हैं जिससे मन प्रफुल्ल होता है तथा उनकी बाल्य प्रकृति को तृप्ति मिलती है।
प्रश्न 8. जीवन-यात्रा संपन्न करने के लिए क्या आवश्यक है ?
उत्तर – जीवन – यात्रा संपन्न करने के लिए चिंतनशक्ति तथा कल्पना-शक्ति आवश्यक है। मनुष्य बनने अथवा सफलतापूर्वक जीवन-यात्रा संपन्न करने के लिए चिंतन एवं कल्पना पर ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि जीवनरूपी भवन का निर्माण इन्हीं के सहारे होता है ।
प्रश्न 9. रीतिमय शिक्षा का क्या अभिप्राय है?
उत्तर – रीतिमय शिक्षा का अभिप्राय है कि संग्रहणीय वस्तु हाथ आते ही उसका उपयोग जानना, उसका प्रकृत-परिचय प्राप्त करना, और जीवन के साथ आश्रयस्थल बनाते जाना रीतिमय शिक्षा है । तात्पर्य यह है कि लक्ष्य के अनुकूल शिक्षा की प्राप्ति रीतिमय शिक्षा है ।
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प्रश्न 10. शिक्षा और जीवन एक-दूसरे का परिहास किन परिस्थितियों में करते हैं?
उत्तर – शिक्षा और जीवन अर्थात् विद्या और व्यवहार में सुसंलग्नंता निर्मित न होने की स्थिति में दोनों एक-दूसरे का परिहास करते हैं । तात्पर्य कि शिक्षा के प्रतिकूल जब हम आचरण करते हैं अर्थात् जब हम शिक्षा के प्रति अश्रद्धा व्यक्त करते हैं तब शिक्षा हमारे जीवन से विमुख हो जाती हैं और हमारे चरित्र के ऊपर शिक्षा का प्रभाव नहीं पड़ता है । फलतः शिक्षा तथा जीवन का आपसी संघर्ष बढ़ता जाता है, जिस कारण शिक्षा और जीवन एक-दूसरे का परिहास करते हैं ।
प्रश्न 11. मातृभाषा के प्रति अवज्ञा की भावना किस तरह के लोगों के मन में उत्पन्न होती है ?
उत्तर—जिन लोगों के विचारों से मातृभाषा का दृढ़ संबंध स्थापित नहीं होता और वे अपनी भाषा से दूर हो जाते हैं तो उनके मन में मातृभाषा के प्रति अवज्ञा उत्पन्न हो जाती है। अतः लेखक के कहने का तात्पर्य है कि भाषा एवं भाव में मेल न होने के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है । इसका मुख्य कारण यह है कि व्यक्ति जिस भाषा के भाव का मर्म सही रूप में समझ नहीं पाता है तो उस भाषा के प्रति अरूचि उत्पन्न हो जाती है। इस अरूचि के कारण वह भाषा का अनादर करने लगता है। अतः भाषा शिक्षा के साथ भाव .. शिक्षा की वृद्धि न होने के कारण उस भाषा के साथ यथार्थ संसर्ग नहीं होता, इसलिए ऐसे. शिक्षित लोग जिन्हें मातृभाषा का सही ज्ञान नहीं है, भाषा के प्रति अनादर का भाव प्रकट करने लगते हैं ।
प्रश्न 12. आशय स्पष्ट करें :
(क) “हम विधाता से यही वर माँगते हैं – हमें क्षुधा के साथ अन्न, शीत के साथ वस्त्र, भाव के साथ भाषा और शिक्षा के साथ जीवन प्राप्त करने दो।”
उत्तर- पृष्ठ 127 पर आशय संख्या- 4 देखें |
(ख) चिंता-शक्ति और कल्पना-शक्ति दोनों जीवन-यात्रा संपन्न करने के लिए अत्यावश्यक हैं।’
उत्तर – पृष्ठ 126 पर आशय संख्या-2 देखें ।
प्रश्न 13. वर्तमान शिक्षा प्रणाली का स्वाभाविक परिणाम क्या है ?
उत्तर — वर्तमान शिक्षा प्रणाली के स्वाभाविक परिणामों पर विचार करते हुए लेखक रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है कि हमारी शिक्षा जीवन की आवश्यकताओं को पूर्ण नहीं कर पाती । जहाँ हमारे जीवन-वृक्ष की जड़े हैं वहाँ से सौ गज की दूरी पर हमारी शिक्षा की वर्षा होती है। जो थोड़ा-बहुत पानी मिलता है, वह जीवन की शुष्कता दूर करने के लिए – यथेष्ट नहीं है। इसका कारण है कि जिस भाव से हम जीवन निर्वाह करते हैं उसके अनुकूल हमारी शिक्षा नहीं है। हमें जिस समाज में जीवन बिताना है, उस समाज का कोई. उच्च आदर्श हमें शिक्षा प्रणाली में नहीं मिलता। इसमें हम अपने माता-पिता, सुहृद-मित्र, भाई-बहन आदि किसी का प्रत्यक्ष चित्रण नहीं देखते। हमारे दैनिक जीवन के कार्यकलाप का कोई उल्लेख नहीं मिलता, हमारे आकाश और पृथ्वी, निर्मल प्रभात तथा सुंदर संध्या, परिपूर्ण खेत और देशलक्ष्मी स्रोतस्विनी का संगीत उस साहित्य में ध्वनित नहीं होता । साथ ही, जिस शिक्षा को लेकर हम जीवन व्यतीत करते हैं, उसकी उपयुक्तता किसी एक व्यवसाय तक ही सीमित रहती है । अतः वर्तमान शिक्षा प्रणाली का संपूर्ण जीवन के साथ संबंध नहीं है । इसी कारण एक व्यक्ति यूरोपीय दर्शन, विज्ञान और न्यायशास्त्र का पंडित है तो दूसरी ओर कुसंस्कारों का यत्नपूर्वक पोषण भी करता है ।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली के कारण विद्या और व्यवहार में दुर्भेद्य व्यवधान उत्पन्न हो गया है ।
प्रश्न 14. अंग्रेजी हमारे लिए काम-काज की भाषा है, भाव की भाषा नहीं । कैसे ?
उत्तर—लेखक का मानना है कि जिस भाषा से हम अपरिचित हैं, उसके प्रति हमारे मन में कोई स्मृति जागृत नहीं होती है क्योंकि उन्हें हम अपने मर्मस्थल पर केन्द्रित नहीं कर पाते हैं । इसका कारण यह है कि परीक्षा पास करने के लिए येन-केन-प्रकारेण कंठस्थ कर लेते हैं, परन्तु उसके भाव से अपरिचित ही रह जाते हैं । लेखक का मानना है कि जिस प्रकार ‘हवा से पेट नहीं भरता – पेट तो भोजन से ही भरता है, लेकिन भोजन को ठीक से हजम करने के लिए हवा आवश्यक है, उसी प्रकार अंग्रेजी भाषा की शिक्षा से आजीविका तो मिल जाती है लेकिन भाव अर्थात् व्यावहारिक ज्ञान अथवा कल्पना शक्ति का विकास नहीं हो पाता । फलतः शुष्क ज्ञान का बोझ ढोते रह जाते हैं, मनुष्यत्व का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता ।
प्रश्न 15. आज की शिक्षा मानसिक शक्ति का ह्रास कर रही है । कैसे ? इससे छुटकारा पाने के लिए आप किस तरह की शिक्षा को बढ़ावा देना चाहेंगे ।
उत्तर- संकेत : छात्र इस प्रश्न का उत्तर के लिए पाठ का सारांश देखें ।
नोट : पाठ के आस-पास के प्रश्नों के उत्तर छात्र स्वयं तैयार करें !
भाषा की बात (व्याकरण संबंधी प्रश्न एवं उत्तर)
प्रश्न 1. संधि-विच्छेद करें :
उत्तर :
शब्द उत्तर
अत्यावश्यक अति + आवश्यक
यथेष्ट यथा + इष्ट
स्वाधीनता स्व + अधीनता
उज्ज्वल उत् + ज्वल
सर्वांग सर्व + अंग
नीरस निः + रस
अत्यन्त अति + अंत
निरानंद निः + आनंद
बाल्यावस्था बाल्य + अवस्था
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प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों के विलोम रूप लिखें
उत्तर :
शब्द विलोम शब्द
धर्म अधर्म
कड़वी मधुर
आवश्यक अनावश्यक
हास वृद्धि
जीवन मरण
उपयोग दुरूपयोग
नवीन प्राचीन
मानवीय दानवीय
दुर्भाग्य सौभाग्य
सबल निर्बल
शाम सुबह
सरसता नीरसता
प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें :
उत्तर :
शब्द पर्यायवाची
ईश्वर – भगवान, ईश, जगपालक, विधाता, अच्युत
पृथ्वी – धरा, धरणी, धरित्री, वसुंधरा, धरती, क्षिति
आँख – लोचन, अक्षि, नेत्र, नयन
प्रश्न 4. निम्नलिखित शब्दों का समास विग्रह करें एवं उसके प्रकार बताएँ :
उत्तर :
शब्द समास विग्रह प्रकार
सत्यराज्य सत्य का राज्य षष्ठी तत्पुरुष
वयोविकास वह जो बूढ़ा हो गया कर्मधारय
वय का विकास षष्ठी तष्ट्पुरुष
मातृभाषा मातृभूमि / माता की भाषा षष्ठी तत्पुरुष
प्रश्न 5. पठित पाठ से दो अकर्मक और दो सकर्मक क्रिया चुनें :
उत्तर : अकर्मक क्रिया-झगड़ा होना, व्यर्थ होना
सकर्मक क्रिया- जानना, उगाना |
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